Saturday, December 5, 2015

|| धीरे-धीरे उतर रही है मेरी संध्या-वेला ||


     
धीरे-धीरे उतर रही है मेरी संध्या-वेला
बीत गया दिन गाते-गाते
मधुर स्वरों के महल उठाते
श्रोता एक-एक कर जाते
उखड़ रहा है मेला

डूब रही है किरण सुनहरी
बढ़ी आ रही तम की लहरी
आगे एक गुफा है गहरी
जाना जहाँ अकेला

कल जो इस तट पर आयेगा
मेरा दर्द समझ पायेगा!
क्या कोई कल दुहरायेगा
यह गायन अलबेला?
धीरे-धीरे उतर रही है मेरी संध्या-वेला
शुभ संध्या

पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

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