Wednesday, December 30, 2015

पूरे भारत में बारह ज्योर्तिलिंग हैं जिसके विषय में मान्यता है कि इनकी उत्पत्ति स्वयं हुई। इनके अलावा देश के विभिन्न भागों में लोगों ने मंदिर बनाकर शिवलिंग को स्थापित किया है और उनकी पूजा करते हैं।
भारतीय सभ्यता के प्राचीन अभिलेखों एवं स्रोतों से भी ज्ञात होता है कि आदि काल से ही मनुष्य शिव के लिंग की पूजा करते आ रहे हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि सभी देवों में महादेव के लिंग की ही पूजा क्यों होती है। इस संदर्भ में अलग-अलग मान्यताएं और कथाएं हैं।
एक बार शिव को अपना होश नहीं रहा और वह निर्वस्त्र होकर भटकने लगे इससे ऋषियों ने उन्हें शाप दिया कि उनका लिंग कटकर गिर जाए। इसके बाद शिव का लिंग कटकर पाताल में चला गया। उससे निकलने वाली ज्योति से संसार में तबाही मचने लगी।
इइसके बाद सभी देवतागण देवी पार्वती के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या का समाधान करने की प्रार्थना करने लगे। इसके बाद पार्वती ने शिवलिंग को धारण कर लिया और संसार को प्रलय से बचा लिया।
इसके बाद से शिवलिंग के नीचे पार्वती का भाग विराजमान रहने लगा। यह नियम बनाया गया कि शिवलिंग की आधी परिक्रमा होगी। इस प्रकार की कथा कई पुराणों में है।
शिव पुराण में शिवलिंग की पूजा के विषय में जो तथ्य मिलता है वह तथ्य इस कथा से अलग है। शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म कहा गया है। इस पुराण के अनुसार भगवान शिव ही पूर्ण पुरूष और निराकार ब्रह्म हैं। इसी के प्रतीकात्मक रूप में शिव के लिंग की पूजा की जाती है।
भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग प्रकट किया था। इस लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ। इसी समय से शिव के परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में लिंग की पूजा आरंभ हुई।
हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो की खुदाई से पत्थर के बने लिंग और योनी मिले हैं। एक मूर्ति ऐसी मिली है जिसके गर्भ से पौधा निकलते हुए दिखाया गया। यह प्रमाण है कि आरंभिक सभ्यता के लोग प्रकृति के पूजक थे। वह मानते थे कि संसार की उत्पत्ति लिंग और योनी से हुई है। इसी से लिंग पूजा की परंपरा चल पड़ी।
सभ्यता के आरंभ में लोगों का जीवन पशुओं और प्रकृति पर निर्भर था इसलिए वह पशुओं के संरक्षक देवता के रूप में पशुपति की पूजा करते थे। सैंधव सभ्यता से प्राप्त एक सील पर तीन मुंह वाले एक पुरूष को दिखाया गया है जिसके आस-पास कई पशु हैं।
इसे भगवान शिव का पशुपति रूप माना जाता है। प्रथम देवता होने के कारण ही इन्हें ही सृष्टिकर्ता मान लिया गया और लिंग रूप में इनकी पूजा शुरू हो गयी।

1 comment:

  1. Shiva linga is a root (“mool”) of this whole universe (“Bhramanda”), God or supreme energy. Shiva linga is a physical symbol of God. Shiva linga is a Yantra of Shiva. It is a root of you too as you are also a light of an Great Blog.
    Almighty God or Shiva. In fact, offering water to Shiva linga is equal to the offering water to your root (“mool”) or your soul to make you flourish and happy. Offering water to Shiva linga gives so many things to you....Read https://www.lifeinvedas.com/secret-offering-water-shiva-linga/

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