Monday, December 21, 2015

|| मृतसंजीवनी : विद्या और बूटी ||


     
मृतसंजीवनी : विद्या और बूटी
दैत्य-गुरु शुक्राचार्य मृत संजीवनी विद्या आचार्य थे। उन्हे भगवान शिव ने यह विद्या प्रदान की थी। इसी विद्या के द्वारा वे युद्ध में मारे गए दैत्यों को पुनः जीवित कर देते थे। इस विद्या को सीखने के लिए गुरु बृहस्पति ने अपने पुत्र कच को शुक्राचार्य का शिष्य बनने के लिए भेजा। एक दुर्घटना के कारण शुक्राचार्य ने कच को यह विद्या प्रदान की। वहाँ शुक्र की पुत्री कच से प्रेम करनेे लगी और एक दिन शुक्र की अनुपस्थिति में कच से प्रणय निवेदन करने लगी। परंतु कच ने गुरु-पुत्री को भगिनी समान कह कर अस्वीकार कर दिया। इसपर पुत्री ने कच को आवश्यक समय पर संजीवनी विद्या भूल जाने का शाप दे दिया। मत्स्यपुराणोक्त कथा के अनुसार, कच का वध नहीं हुआ था।
        संजीवनी विद्या के अतिरिक्त, इसका बूटी के रूप में भी रामायण में उल्लेख है। राम-रावण युद्ध में मेघनाथ के भयंकर अस्त्र प्रयोग से जब लक्ष्मण मूर्च्छित हो गए थे, तब हनुमानजी ने जामवंत के कहने पर वैद्यराज सुषेण को बुलाया और सुषेण ने द्रोणगिरि पर्वत पर जाकर ये 4 वनस्पतियां लाने को कहा: मृत संजीवनी (मरे हुए को जिलाने वाली), विशल्यकरणी (तीर निकालने वाली), संधानकरणी (त्वचा को स्वस्थ करने वाली) तथा सवर्ण्यकरणी (त्वचा का रंग बहाल करने वाली)। हनुमान बेशुमार वनस्पतियों में से इन्हें पहचान नहीं पाए, तो पूरा पर्वत ही उठा लाए। इस प्रकार लक्ष्मण को मृत्यु के मुख से खींचकर जीवनदान दिया गया।
इन 4 वनस्पतियों में से मृत संजीवनी (या सिर्फ संजीवनी कहें) सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके बारे में कहा जाता है कि यह व्यक्ति को मृत्युशय्या से पुनः स्वस्थ कर सकती है। सवाल यह है कि यह चमत्कारिक पौधा कौन-सा है ? इस बारे में कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बेंगलुरु और वानिकी महाविद्यालय, सिरसी के डॉ. के. एन. गणेशय्या, डॉ. आर. वासुदेव तथा डॉ. आर. उमाशंकरन् ने बेहद व्यवस्थित ढंग से इस पर शोध कर दो पौधों को चिह्नित किया है। उन्होंने सबसे पहले तो भारत-भर में विभिन्न भाषाओं और बोलियों में उपलब्ध रामायण के सारे संस्करणों को देखा कि क्या इन सबमें ऐसे पौधे का जिक्र मिलता है जिसका नाम संजीवनी या इससे मिलता-जुलता हो ? उन्होंने भारतीय जैव अनुसंधान डेटाबेस लायब्रेरी में 80 भाषाओं व बोलियों में अधिकांश भारतीय पौधों के बोलचाल के नामों की खोज की। उन्होंने 'संजीवनी' या उसके पर्यायवाचियों और मिलते-जुलते शब्दों की खोज की। खोज में 17 प्रजातियों के नाम सामने आए। जब विभिन्न भाषाओं में इन शब्दों के उपयोग की तुलना की गई, तो मात्र 6 प्रजातियां शेष रह गईं। इन 6 में से भी 3 प्रजातियां ऐसी थीं, जो 'संजीवनी' या उससे मिलते-जुलते शब्द से सर्वाधिक बार और सबसे ज्यादा एकरूपता से मेल खाती थी : क्रेसा क्रेटिका, सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस और डेस्मोट्रायकम फिम्ब्रिएटम। इनके सामान्य नाम क्रमशः रुदन्ती, संजीवनी बूटी और जीवका हैं। इन्हीं में से एक का चुनाव करना था। अगला सवाल यह था कि इनमें से कौन-सी पर्वतीय इलाके में पाई जाती है, जहां हनुमान ने इसे तलाशा होगा। क्रेसा क्रेटिका नहीं हो सकती, क्योंकि यह दखन के पठार या नीची भूमि में पाई जाती है। अब शेष बची दो वनस्पतियां। शोधकर्ताओं ने सोचा कि वे कौन-से मापदंड रहे होंगे जिनका उपयोग रामायण काल के चिकित्सक औषिधीय तत्व के रूप में करते रहे होंगे। प्राचीन भारतीय पारंपरिक चिकित्सक इस सिद्धांत पर अमल करते थे कि जिस पौधे की बनावट प्रभावित अंग या शरीर के समान हो, वह उससे संबंधित रोग का उपचार कर सकता है। सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस कई महीनों तक एकदम सूखी या 'मृत' पड़ी रहती है और एक बारिश आते ही 'पुनर्जीवित' हो उठती है। डॉ. एन. के. शाह, डॉ. शर्मिष्ठा बनर्जी और सैयद हुसैन ने इस पर कुछ प्रयोग किए हैं और पाया है कि इसमें कुछ ऐसे अणु पाए जाते हैं, जो ऑक्सीकारक क्षति व पराबैंगनी क्षति से चूहों और कीटों की कोशिकाओं की रक्षा करते हैं तथा उनकी मरम्मत में मदद करते हैं। तो क्या सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस ही रामायण काल की संजीवनी बूटी है ? गणेशय्या व उनके साथी जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहते। उनका कहना है कि दूसरे पौधे डेस्मोट्रायकम फिम्ब्रिएटम का दावा भी कम नहीं है। अब इन दो प्रजातियों के बीच फैसला करने के लिए और शोध की जरूरत है। इसके संपन्न होते ही रामायण-कालीन संजीवनी बूटी शायद हमारे सामने होगी। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह पौधा एक ऐसी औषधि के रूप में काम करता है, जो हमारे इम्यून सिस्टम को रेग्युलेट करता है। हमारे शरीर को पर्वतीय परिस्थितियों के अनुरूप ढलने में मदद करता है और हमें रेडियो एक्टिविटी से भी बचाता है।

सं० पं.जगदीश प्रसाद द्विवेदी एवं पं.उमेश नंदा
Edited by: SKMishra.shoaqh

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