Monday, December 21, 2015

|| ठंडी पर एक व्यगं मात्र मनोविनोद के लिये यह लेख केवल काल्पनिक है ||


     
ठंडी पर एक व्यगं मात्र मनोविनोद के लिये यह लेख केवल काल्पनिक है 
जाड़ा बहुत सतावत बा
सरसर हवा बाण की नाईं
थर थर काँपैं बाबू माई
तपनी तापैं लोग लुगाई
कोहिरा छंटत नहीं बा भाई
चहियै सबै जियावत बा
जाड़ा बहुत सतावत बा
गरमी असौं बराइस खीस
जाड़ा भय बा ओसे बीस
जौ ना रोकिहैं अब जगदीस
मरि जइहैं बुढ़ये दस बीस
जियरा बहुत जरावत बा
जाड़ा बहुत सतावत बा
माछी मच्छर भएन अलोप
पहिने बाटै सब कनटोप
बरफ किहे बा अइसन कोप
गाँव भयल सरवा यूरोप
केहु ना देखै आवत बा
जाड़ा बहुत सतावत बा


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

No comments:

Post a Comment