Monday, December 21, 2015

|| अग्निवास वैदिक पूजन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है ||

     

अग्निवास वैदिक पूजन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है, जिस प्रकार वैदिक पूजन में मुहूर्त, निश्चित संख्या में मंत्र जाप और पूर्णाहुति हवन होता है उसी का महत्वपूर्ण हिस्सा अग्निवास भी है
अग्निवास निकाले बिना हवन को पूर्ण नहीं माना जाता | हवन के बिना
अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता और शास्त्रीय नियम के तहत हवन के समय अग्नि का वास
पृथ्वी पर होना अनिवार्य है अन्यथा अनुष्ठान निष्फल हो जाता है |
अग्निवास की गणना कैसे की जाए ?
एक मास (महीने) में दो पक्ष होते हैं
शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष
शुक्ल पक्ष
लगभग 15 दिनों का होता है |
पहली तिथि को प्रतिपदा या पड़ीवा और अंतिम तिथि को पूर्णिमा कहते हैं |
कृष्ण पक्ष
लगभग 15 दिनों का होता है |
पहली तिथि को प्रतिपदा या पड़ीवा और अंतिम तिथि को अमावस कहते हैं |
दिन का मान
रविवार को 1 , सोमवार 2, मंगलवार 3, बुधवार 4, बृहस्पतिवार 5, शुक्रवार 6, शनिवार 7
Formula :
जिस दिन का अग्निवास निकालना है उस दिन की तिथि और दिन लें
शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को पहला दिन मान के तिथि का मान लें
उसमें 1 जोड़ दें
फिर दिन का मान उसमें जोड़ दें
जो योग आये उसको 4 से भाग कर दें
Formula In Short
( तिथि मान + 1 + दिन मान = योग /4 )
अब यदि 0 शेष बचे तो अग्नि का निवास
पृथ्वी पर
यदि 1 शेष बचे तो अग्नि का निवास
स्वर्ग में
यदि 2 शेष बचे तो तो अग्नि का निवास
पाताल में
यदि 3 शेष बचे तो अग्नि का निवास
पृथ्वी पर होता है |
उदहारण : मान लीजिये आपको जिस तिथि का मान निकलना है वो कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि है और उस दिन
सोमवार का दिन है |
तिथि मान + 1 + दिन मान = योग /4
तिथि मान के लिए शुक्ल पक्ष की = 15
कृष्ण पक्ष की पंचमी = 5 इन दोनों को जोड़ का तिथि मान आएगा (15 + 5= 20)
तिथिमान = 20
अब इस तिथि मान में एक जोड़ दें + 1 (20 + 1 = 21 )
अब इसमें दिन का मान सोमवार= 1 भी जोड़ दें (21+1=22)
अब कुल योग आये 22 को 4 से भाग दें
4 )22(5
20
शेष बचा 2 अर्थात आज का अग्निवास
पाताल में होगा |
पृथ्वी पर अग्नि का वास सुखकारी होता है |
स्वर्ग में अग्नि का वास अशुभ और प्राण नाशक माना गया है |
पाताल में अग्नि के वास से धन नाश होता है |
इस लिए हमेशा ही हवन तब करें जब इसमें 0 अथवा 3 शेष बचे और कल्याण के भागी बनें |


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830 

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