Monday, December 21, 2015

|| पीड़ा से लिया जोड़ है नाता ||


     
पीड़ा से लिया जोड़ है नाता,
नहीं बुझती है जी की ज्वाला !
बोझ लगे हैं सारे बंधन,
कौन सुने है मन का क्रंदन,
व्यर्थ किया खुशियों का चंदन,
जीवन में ये क्या कर डाला !
पलकों में अवसाद भरा है,
होठों पर नहीं बात जरा है,
भावशून्य लग रही धरा है,
कैसे तम को करूँ उजाला !
कोई भी नहीं मीत यहाँ है,
ढूँढे पर भी प्रीत कहाँ है,
धोखे की बस रीत यहाँ है,
बनी घृणा सब का है निवाला !


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

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