किस स्वप्न में हो खोये
क्यों मौका गंवा रहे हो
जाना कहाँ था तुमको
किस और जा रहे हो।।
सांसे गिनी चुनी ही
हम सब हैं लेके आये
पल भर का ना भरोसा
कहीं शमां बुझ न जाये।।
लौ हो रही है धीमी
काहे भुला रहे हो
जाना कहाँ था तुमको
किस और जा रहे हो
मंजिल कहाँ तुम्हारी
क्या तुमको कुछ पता है
भटको न इधर उधर तुम
इस घर में ही खुदा है
घन श्याम तुम हो बहके
बहकते ही जा रहे हो
जाना कहाँ है तुमको
किस और जा रहे हो।।
(इस रचना की दो पंक्ति प्रेमभूषण जी के भजन से संग्रहीत हैं)
क्यों मौका गंवा रहे हो
जाना कहाँ था तुमको
किस और जा रहे हो।।
सांसे गिनी चुनी ही
हम सब हैं लेके आये
पल भर का ना भरोसा
कहीं शमां बुझ न जाये।।
लौ हो रही है धीमी
काहे भुला रहे हो
जाना कहाँ था तुमको
किस और जा रहे हो
मंजिल कहाँ तुम्हारी
क्या तुमको कुछ पता है
भटको न इधर उधर तुम
इस घर में ही खुदा है
घन श्याम तुम हो बहके
बहकते ही जा रहे हो
जाना कहाँ है तुमको
किस और जा रहे हो।।
(इस रचना की दो पंक्ति प्रेमभूषण जी के भजन से संग्रहीत हैं)
पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
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8828347830
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