Monday, January 11, 2016

|| हरि: ॐ तत्सत् सर्वेभ्यो नमो नम: सुप्रभातम् ||


     
हरि: ॐ तत्सत् सर्वेभ्यो नमो नम: सुप्रभातम्
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जय श्री कृष्णा। शेयर भी अवश्य करें ताकि ये जानकारी सभी लोगों तक पहुंचे।।
कुछ बातें बार बार हिन्दुओं को गलत दिखाने के लिए की जाती है
आज का प्रश्न:- वेद में लिखा है कि “न तस्य प्रतिमा अस्ति” जब वेदों में मूर्ती पूजा मना है तो फिर क्यों आप लोग मूर्ती पूजा करते हो? जबकि सनातन में वेद को बहुत बड़ा स्थान दिया है तो फिर वेदों का उलंघन क्यों करते हो? वेदों का उलंघन करके क्या कोई सनातनी रह कैसे सकता है?
मित्रों पहले तो ये समझो कि किसी को भी कुछ भी गलत कह देना ये आपकी गलत और तुच्छ सोच का प्रमाण देती है।।
मेरी राय आपको इतनी है कि कभी भी सुनी बातों से ज्यादा खुद भी पढ़ लिया करें।। आपको शर्म आनी चाहिए हमेशा एक छोटी सी लाइन ही लेकर आ जाते हैं उनको या तो पूरे पाठ पढ़ लेना चाहिए या हो सके तो कम से कम पूरे श्लोक का तो अर्थ जान ही लेना चाहिए।।
एक कहावत तो सुनी ही होगी कि अधूरा ज्ञान अज्ञान का ही दूसरा रूप है।।
पूरा श्लोक है ये।।
‘यस्य नाम महाद्यश:। हिरण्यगर्भस इत्येष मा मा हिंसीदित्येषा यस्मान जात: इत्येष:।।’- यजुर्वेद ३२वां अध्याय श्लोक ३
न तस्य प्रतिमा अस्ति= प्रतिमा शब्द का अर्थ आकर से भी होता है, और वो अनेकों तत्वों और द्रव्यों का समूह है, जैसे मिटटी, पानी या अन्य धातु या द्रव्य या तत्वों का कोई एक रूप आकर प्रतिमा नहीं उसी प्रकार ये भी सीमित आकर में नहीं है।।
यस्य नाम महाद्यश:= उसका नाम ही महाद्रश्य है उसकी तुलना में कोई नहीं अग्निल वही है, आदित्यह वही है, वायु, चंद्र और शुक्र वही है, जल, प्रजापति और सर्वत्र भी वही है, ये सभी का समूह है।न तस्य प्रतिमा अस्ति= प्रतिमा शब्द का अर्थ आकर से भी होता है, और वो अनेकों तत्वों और द्रव्यों का समूह है, जैसे मिटटी, पानी या अन्य धातु या द्रव्य या तत्वों का कोई एक रूप आकर प्रतिमा नहीं उसी प्रकार ये भी सीमित आकर में नहीं है।।
हिरण्यगर्भस इत्येष मा मा= उस परमात्मा की पूजा इसके ब्रम्हांड(गर्भ) से जन्मे हुओं द्वारा आदि आदि मन्त्रों और कार्यों से की जाती है।।
हिंसीदित्येषा यस्मान जात: इत्येष:= इसके विपरीत इसी के गर्भ से जन्मे दैत्य आदि भी उतनी ही हिंसा आदि किया करते हैं।।
इस श्लोक के संशय से क्या स्पष्ट होता है समझदार के लिए काफी है, और जिनके लिए काफी नहीं है उनके लिए उदहारण भी दे देते हैं समझने में आसानी होगी।।
उदहारण:- सभी एक ही से पैदा हैं और हम उस परब्रम्हं के आगे कुछ भी नहीं हैं ये तो समझ में आ गया होगा, और हमें सदैव उसका ही अनुसरण करना चाहिए।।
लेकिन इसमें कोई बंधन नहीं है।।
अगर कुछ लोग रोज़ सुबह मन्त्र जाप नहीं कर सकते तो सुबह सुबह मंदिर में जाकर ध्यान-पूजा भी करते हैं,
जो रोज़ मंदिर नहीं जा सकते वो कभी कभी भी मंदिर जाकर पूजा करते हैं,
जो मंदिर नहीं जा पाते लेकिन सदैव ईश्वर के लिए उनके ध्यान-पूजा में रहना चाहते हैं तो कुछ लोग अपने घरों में भी मूर्ती की ध्यान-पूजा करते हैं,
कुछ लोग मूर्ती नहीं पूजते लेकिन फिर भी समय समय पर ईश्वर का ध्यान करते हैं,
कुछ लोग संन्यास लेकर ईश्वर का ध्यान-पूजा करते हैं तो कुछ गृहस्थ जीवन में रहकर भी ईश्वर का ध्यान-पूजा करते हैं,
सनातन में सभी लोग अनेक अनेक प्रकार से ईश्वर का ध्यान-पूजा करते हैं।।
और बाकी धर्मों में भी कोई बंधन नहीं होता है बल्कि जैसा आप चाहे आप ईश्वर का ध्यान-पूजा करते हैं बस इसके लिए ध्यान और पूजा दोनों आवश्यक हैं क्योंकि अगर आपका ध्यान कहीं और है तो आपकी पूजा नहीं होती बल्कि केवल आडम्बर ही होता है।। जो आज के समय में बहुत से लोग मिल जायेंगे जो मंदिर जाते हैं ईश्वर के आगे हाथ जोड़ते हैं और फिर भी उनका ध्यान बाकी दूसरी बातों में रहता है तो इसको नादानी में माफ़ किया जा सकता है अपितु इसके विपरीत किसी की नियत में खोट है और वो जानबूझकर मंदिर में जाकर आडम्बर करता है और अपने किसी अन्य गलत नियत से मंदिर में जाकर कुछ गलत करता है तो वह माफ़ नहीं हो सकती।।
मुस्लिमों में नमाज को पांच समय के लिए बताया गया है।।
जैसे मक्का एक है और उसकी तरफ मुंह करके नमाज होती है।। मदीना भी इसीलिए मस्जिद बनायीं गयी तो क्या जो मक्का या मदीना नहीं जा पाता वो नमाज नहीं पढता??? पढता है।।
कभी मस्जिद ना मिले और वो सफ़र में हो तो वह रास्ते में भी नमाज पढ़ सकता है तो ये कैसे जानेगा कि मक्का किस तरफ है। फिर भी नमाज मानी जाती है।।
कोई पांच बार नमाज ना पढ़ पाए तो भी उसको एक बार नमाज पढके मुसलमान कहा जाता है।।
कोई दिन में एक बार भी ना पढ़ पाए तो हर जुमा को नमाज पढ़ सकता है।।
तो ये कोई बंधन नहीं है।।
वेदों के लिए ब्रम्हा ने भी तप किया उसके बाद ही प्राप्त हुए।।
ये कोई साधारण नहीं है कि कोई भी कुछ भी कहे जो गलत करेगा उसको उसकी सज़ा मिलेगी अगर इसके विपरीत वह मानव धर्म में श्रेष्ठ है और उसके कर्म से पुन्य इस पाप से अधिक हों तो माफ़ भी है कि उसकी नासमझी थी जो इसको ना समझ सका परन्तु उसने अपने जीवन का सही उपयोग किया और मानवधर्म का नियतरूप से पालन किया।।
मन्त्रों का गलत अर्थ निकाल कर सनातन को बदनाम करना बंद करें।।
क्योंकि जो सत्य है वो ही शाश्वत है।। झूठी शान और नाम या व्यक्ति या वस्तु सदैव नहीं रहती उसका नाश अवश्य होता है, और सनातन सर्वथा सत्य था सर्वथा है और सर्वथा रहेगा।।
अतिरिक्त जानकारी “यस्मान जात:” (यजुर्वेद ८/३६) में परमात्मा को १६ कलाओं से युक्त बताया गया है।। जो श्री कृष्ण जी को दर्शाती है।। “हिरण्यगर्भ” (यजुर्वेद २५/१०) में मनुष्य शरीर की आत्मा को दर्शाया गया है।। “मा मा” (यजुर्वेद १२/१०२) में आदिपुरूष जगदीश्वर की उपासना की गई है” मंत्र का तात्पर्य ये है की “आत्मा का कोई प्रतिमान नही होता।। ” फिर कुछ लोग इस मंत्र को मूर्ति-पूजा के विरुद्ध क्यों इस्तेमाल करते हैं जबकि इसका अर्थ “आत्मा” से संबंधित है।।
जय श्री राम


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830 

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