Monday, January 11, 2016

|| श्रीराम के राज्याभिषेक के पश्चात् स्तुति ||


     
उत्तरकाण्ड
         श्रीराम के राज्याभिषेक के पश्चात् स्तुति
जय राम रमारमनम शमनम् । भव ताप भयाकुल पाहि जनम् ॥
अवधेश सुरेश रमेश विभो । शरणागत माँगत पाहि प्रभो ॥
दसशीश विन्नशन बीस भुजा । कृत दूरि महाअ महि भूरि रुजा ॥
रजनीचर बृंद पत।ग रहे । सर पावक तेज प्रचंड दहे॥
महि मंदल मंदन चारुतरम् । धृत सायक चाप निषंग बरम् ॥
मद मोह महा ममता रजनी । तम पुंज दिवाकर तेज अनी ॥
मनजात किरात निपात किये । मृग लोग कुभोग सरेन हिये ॥
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे । विषया बन पाँवर भूलि परे ॥
बहु रोग बियोगिन्हि लोग हये । भवदंघ्रि निरादर के फल ए ॥
भव सिंधु अगाध परे नर ते । पद पंकज प्रेम न जे करते ॥
अति दीन मलीन दुखी नितहीं । जिन्ह कें पद पंकज प्रीत नहीं ॥
अवलंब भवंत कथा जिन्ह कें । प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह कें ॥
नहिं राग न लोभ न मान मदा । तिन्ह कें सम बैभव वा बिपदा ॥
एहि ते तव सेवक होत मुदा । मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ॥
करि प्रेम निरंतर नेम लियें । पद पंकज सेवत शुद्ध हियें ॥
सम मानि निरादर आदरही । सब संत सुखी बिचरंति मही ॥
मुनि मानस पंकज भृंग भजे । रघुवीर महा रनधीर अजे ॥
तव नाम जपामि नमामि हरी । भव रोग महागद मान अरी ॥
गुन सील कृपा परमायतनम् । प्रनमामि निरंतर श्रीरमनम् ॥
रघुनंद निकंदय द्वंद्व घनम् । महिपाल बिलोकय दीन जनम् ॥
        बार बार बर मागउं हरषि देहु श्रीरंग ।
        पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग ॥


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830 

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