Monday, January 11, 2016

|| हृदय की पीड़ा को, प्रेम रस वीणा को ||


     
हृदय की पीड़ा को, प्रेम रस वीणा को,
प्रकट हो जाने दो, आज मुझे गाने दो!
नयनों के बादर से, भावों के सागर से,
बरस अब जाने दो, आज मुझे गाने दो!
प्रीतम के प्रीत को, मेरे हर गीत को,
एक हो जाने दो, आज मुझे गाने दो!
जग के कुरीत को, बंधन की रीत को,
टूट अब जाने दो, आज मुझे गाने दो!
सुरभित पवन को, पल्लिवत चमन को,
गीत गुनगुनाने दो ,आज मुझे गाने दो!
चाँद और चकोर को, वर्षा और मोर को,
मिल अब जाने दो, आज मुझे गाने दो!
झील के किनारों से , मस्त नजारों से,
स्वर को लहराने दो, आज मुझे गाने दो!
बसंत सुगंत को, पुष्प और मकरंद को,
बिखर अब जाने दो, आज मुझे गाने दो!


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830 

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