Monday, January 11, 2016

|| ऋणशेषं चाग्निशेषं व्याधिशेषं तथैव च ||



     
ऋणशेषं चाग्निशेषं व्याधिशेषं तथैव च ।
पुन: पुन: प्रवर्धते तस्मान्छेषं न कारयेत ।।
शेष बचा हुअा ऋण, शेष अग्नि तथा शेष रोग पुन: पुन: बढते हैं । इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिए । शौनकीयनीतिसार
सुप्रभातम् । आपका  दिन शुभदिन हो । संकलित


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830 

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