ऋणशेषं चाग्निशेषं व्याधिशेषं तथैव च ।
पुन: पुन: प्रवर्धते तस्मान्छेषं न कारयेत ।।
शेष बचा हुअा ऋण, शेष अग्नि तथा शेष रोग पुन: पुन: बढते हैं । इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिए । शौनकीयनीतिसार
सुप्रभातम् । आपका दिन शुभदिन हो । संकलित
पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
No comments:
Post a Comment