Sunday, November 8, 2015

|| जितना जरूरी हो, उतना ही बोलें ||



     
 जितना जरूरी हो, उतना ही बोलें।
वास्तव में जगत में सारे अच्छे विचार मौन से उत्पन्न होते हैं।
मानसिक शांति के लिए मौन अमृत समान है। प्राय: वाद-विवाद होने
पर मन का संतुलन बिगड़ जाता है। इसका सबसे अच्छा समाधान है
मौन। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शुद्ध
भोजन व गहन निद्रा आवश्यक है उसी प्रकार
मानसिक स्वास्थ्य के लिए मौन। सोने से एक घंटा पूर्व व प्रात:
ब्रह्म मुहूर्त में एक घंटा मौन रहकर प्रभु
की शरण में चले जाएं, शांति व
खुशी की अनुभूति होगी। शांत
रहें, मौन रहें, खुश रहें। जो लोग मौन का महत्व समझते हैं वे
अपने जीवन में कभी असफल
नहीं होते, क्योंकि मौन हजार शब्दों से
भी अधिक मूल्यवान होता है।


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

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