Tuesday, November 3, 2015

श्री कृष्ण-पत्नियों का रहस्य

        एक बार नारद के मन में संशय जगा कि भगवान की इतनी शादी हुई है तो अकेले 16108 पत्नियों से कैसे निर्वाह करते होगे किसको कितना समय देते होंगे। तो नारद जी भगवान कृष्ण की सभा (सुधर्मा नामक)में चुपके से प्रवेश किया तो देखते है की मन्त्रणा में ब्यस्त है। नारद ने सोचा, यही मौका है स्थिति को जानने का तो पहले रुक्मिणी के कमरे में प्रवेश किया। तो देखते है की भगवान पलंग पर विराज मान है मइया चरण दबा रही है। नारद के मन में आया की शायद हमे देख लिया हो तो कोई गुप्त मार्ग से आ गए हो। पर नारद कहा माने। वेक्रमशः हर भवन में गए और भगवान को कही पालने में बच्चों को खिलाते, कही बालो को गूथते, कही पत्नियो से परिहास करते यानि जिस भी भवन में गए हर जगह कृष्ण को पाया। जब लौट कर सुधर्मा सभा में आये तो भगवान को मन्त्रणा करते पाया नारद ये माया समझ नही पाये अचेत होकर गिर जाते है। लीला बिहारी की कृपा दृष्टि नारद पर पड़ी विचार किया अगर इसके संशय को दूर नही किया तो नारद रुपी भक्त से हाँथ धोना पड़ेगा। प्रभू ने तुरन्त विराट रूप धारण करके एक हाथ से नारद को जगाया और एक से नारद के मुख मण्डल पर जल प्रोक्षण करते है। नारद की दृष्टि खुली तो देखते है न सुधर्मा सभा है न भवन न पत्निया न कोई पुत्र। नारद ने कहा, प्रभु ये क्या है ? भगवान ने कहा, नारद जिसे तुम पत्नी बच्चे समझ रहे हो वो लीला मात्र है। सच तो ये है कि जो तुम देख रहे हो उन पत्नियो में तुम भी मेरी एक पत्नी हो। नारद चौक गए। तब प्रभुजी ने नारद से कहा जैसे तुम मुझे पाने के लिए भक्ति रूप में अपने को अर्पण करते हो उसी प्रकार ये सब पूर्व जन्म के सन्त है और हमारी ही सोलह कलाये है जो मेरा भोग करने के लिए प्रकृति से आबद्ध हो कर एक एक कला एक एक हजार रूप धारण करके सोलह हजार और दश इंद्रियों ने दश रूप यानि एक इंद्रिय दस रूप धारण करके 100 पत्निया बनी और हे नारद जो आठ पट रानिया है वो मेरी ही आठ सिद्धियां है अणिमामहिमा चैव गरिमालघिमा तथा प्राप्तिहप्राकाम्यइशित्वं वषित्वमचाष्टसिद्धयः।
येसब मुझको भोगने केलिए ही पत्नी बन कर आयी है पर ये आबद्ध है प्रकृति से और मैं परे हु प्रकृति से इस लिए तुम्हे 'एकोऽहम् बहुस्याम' के रूप में दिखा। जब नारद का भरम टूटा,, तब नारद ने ही भगवान कृष्ण को 'न च्युतः तस्य अच्चुतः' की उपाधि यानि ब्रह्मचारी की पदवी प्रदान करके प्रदक्षिणा किया वहां से प्रस्थान किये (श्री मद्भागवत दशमस्कन्ध उत्तरार्ध)।

--पं जगदीश प्रसाद द्विवेदी 'महाकाल बाबा'
Edited

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