Wednesday, November 11, 2015

|| साधना में मौन की भूमिका ||


     
साधना में मौन की भूमिका :-
      मनुष्य के जीवन में ज्ञान ही एकमात्र लक्ष्य है और इसी की स्फूर्त्ति निमित्त साधना के त्रिविध सोपानों -- मानसिक, वाचिक और कायिक -- का प्रतिपादन किया गया है। मानसिक साधना ध्यान की एकाग्रता से, वाचिक साधना मौनत्त्व से तथा कायिक साधना अनन्यता से होती है। कायिक साधना में अनन्यता के उपलक्ष्य ही पंचायतन तथा सम्प्रदाय एवं आम्नाय आदि के साथ-साथ चातुर्वर्ण्य और जाति-भेद के परम वैज्ञानिक वर्गीकरण किये गये हैं। इन सबके मूल में उद्देश्य यही रहा है कि मनुष्य के स्वभाव-लक्षण के अनुकूल उसमें ज्ञान का उत्कर्ष हो। पूज्य गोस्वामी जी ने इसी आशय से कहा- 'एक कर्म एकहि व्रत नेमा'। परंतु विडम्बना यह बन गयी कि सनातन धर्म का 'हिंदू' संज्ञा द्वारा नामकरण किया गया और सदियों से उसमें बहुदेव-उपासना का समावेश करके सांस्कृतिक अद्वितीय शुद्धता को छिन्न-भिन्न कर दिया गया। उसीका परिणाम था मध्यकालीन साम्प्रदायिक संघर्ष। अस्तु,
      वाचिक साधना का वैसे भी मनुष्य के जीवन में प्रायोगिक महत्त्व है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और एक ही समय में वह प्रकृति (विश्व) और समाज (संसार) पर समान रूप से निर्भरशील भी है। अतः उसे शिष्टाचार, सदाचार का भी मर्यादाऽनुकूल व्यवहार करना अभीष्ट होता है। इसलिए भी कर्म की त्रिविध-आयामिक परिभाषा की जाती है, यथा- मानसिक, वाचिक और क्रियात्मक। वाचिक साधना में कण्ठ ही एकमात्र वागिन्द्रिय है। कण्ठ की दो ही अवस्थाएँ हैं -- वाचन और मौन। तो हम समझ सकते हैं कि वाचन और मौन दोनों ही परस्पर अन्योन्याश्रित संक्रियाएँ हैं। इनमें से एक का भी अतिरेक दूसरे की वाञ्छनीयता को प्रत्यक्ष होने के लिए मजबूर कर देता है।
       वैश्वीय संदर्भ में भी सूक्ष्म दृष्टिपात किया जाय तो हम देखेंगे कि इस पृथ्वी पर मनुष्य की वही संस्कृति श्रेष्ठतम है, जिसने मौन को सम्पूर्ण श्रेय प्रदान किया है।
आगे फिर ....।
गार्गी को श्रेय दें या आलेख-रचयिता को। जिस तथ्य के बल पर गार्गी ने निर्णय लिया वह तो नैपथ्य में ही लुप्त रह गया। किस बल पर इसे सत्य कहेंगे ?
गार्गी ने शास्त्रार्थ किया तो सम्पूर्ण प्रकरण को संकलित करें, जिससे हम कुछ सीखें। प्रेषक महोदय ने आनंद के भाग को ऐसे छिपाया जैसे पाठक उस सभा में बैठे थे। कम से कम मैं नहीं था। मुझे तो बताया जाय वह समस्त शास्त्रार्थ। या अधूरा पोस्ट न करें। जिज्ञासा उठी तो मिटनी भी चाहिए। बुरा नहीं लगा, अधूरा लगा।

पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830 

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