Saturday, November 21, 2015

|| नवधा भकति कहउँ तोहि पाहीं ||


     

नवधा भकति कहउँ तोहि पाहीं।
सावधान सुनु धरु मन माहीं।।
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा।
दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।।
गुर पद पकंज सेवा तीसरि भगति अमान।
चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान।
मन्त्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा।
पंचम भजन सो बेद प्रकासा।।
छठ दम सील बिरति बहु करमा।
निरत निरंतर सज्जन धरमा।।
सातवँ सम मोहि मय जग देखा।
मोतें संत अधिक करि लेखा।।
आठवँ जथालाभ संतोषा।
सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा।।
नवम सरल सब सन छलहीना।
मम भरोस हियँ हरष न दीना।।
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पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

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