सब ते सेवक धरमु कठोरा।
बड़ा विलक्षण प्रसंग है। घोड़े साथ में जा रहे थे, भरतजी पैदल जा रहे थे। माताओं की पालकियों को आगे भेज दिया था। पहले दिन के पड़ाव पर लोगों ने देखा कि भरती जी के पैरों में छाले पड़े हैं। माताओं ने कहा कि लाल, तुम्हारे पैरों में अभी से छाले पड़े हैं तो तुम यात्रा कैसे पूरी करोगे? भरतजी की आंखों में आंसू आ गए।
बोले मां, सेवक का जो धर्म है वह पूरा तो मैं पालन नहीं कर रहा हूं, पर मैं जितना कर रहा हूं उतने में भी आप व्यवधान क्यों डालती हैं। आप कहेंगी तो मुझे घोड़े पर बैठना पड़ेगा, इसलिए आप ऐसा मत कहिए और वहां पर भरतजी ने सेवा धर्म को सबसे कठोर धर्म बताया है। वे कहते हैं, मां, मेरे प्रभु, चित्रकूट की यात्रा में पैदल गए और मैं उनका सेवक घोड़े पर चढ़कर जाऊं, रथ में बैठकर जाऊं? मुझको तो सिर के बल जाना चाहिए।
बोले मां, सेवक का जो धर्म है वह पूरा तो मैं पालन नहीं कर रहा हूं, पर मैं जितना कर रहा हूं उतने में भी आप व्यवधान क्यों डालती हैं। आप कहेंगी तो मुझे घोड़े पर बैठना पड़ेगा, इसलिए आप ऐसा मत कहिए और वहां पर भरतजी ने सेवा धर्म को सबसे कठोर धर्म बताया है। वे कहते हैं, मां, मेरे प्रभु, चित्रकूट की यात्रा में पैदल गए और मैं उनका सेवक घोड़े पर चढ़कर जाऊं, रथ में बैठकर जाऊं? मुझको तो सिर के बल जाना चाहिए।
पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
No comments:
Post a Comment