Saturday, November 21, 2015

|| उपासना करने के नौ तरीके ||

नवधा भक्ति : भगवान को पाने के नौ आसान रास्ते
आज की तेज रफ्तार जिंदगी में हर किसी के पास घंटों मंदिर में बैठकर पूजन, हवन या यज्ञ करने का समय नहीं है। न ही कोई रोज तीर्थ दर्शन कर सकता है। फिर भगवान की भक्ति कैसे की जाए?क्या आपको पता है कि भक्ति के नौ तरीके होते हैं, आध्यात्म की भाषा में इसे नवधा भक्ति कहते हैं। इसमें भगवान को याद करने या 

     
उपासना करने के नौ तरीके दिए गए हैं, जिससे आप बिना मंदिर जाए, बिना पूजा-पाठ और बिना तीर्थ दर्शन के भी कर सकते हैं।
ये नौ तरीके जिन्हें नवधा भक्ति कहते हैं, इतने आसान है कि इन्हें कहीं भी, कभी भी किया जा सकता है। रामचरितमानस में भी भगवान राम ने भक्ति के ये नौ प्रकार बताए हैं। इनमें से किसी एक को ही अपनाकर हम भगवान के निकट पहुंच सकते हैं। ये नौ ही प्रयास ऐसे हैं जिनमें हमें कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना है। बस केवल अपने व्यवहार में उतारना भर है, इसके बाद भगवान स्वयं ही मिल जाएंगे। जानते हैं भगवान की नौ तरह से भक्ति के नाम और व्यावहारिक अर्थ -
1. संतो का सत्संग - संत यानि सज्जन या सद्गुणी की संगति।
2. ईश्वर के कथा-प्रसंग में प्रेम - देवताओं के चरित्र और आदर्शों का स्मरण और जीवन में उतारना।
3. अहं का त्याग - अभिमान, दंभ न रखना। क्योंकि ऐसा भाव भगवान के स्मरण से दूर ले जाता है। इसलिए गुरु यानि बड़ों या सिखाने वाले व्यक्ति को सम्मान दें।
4. कपट रहित होना - दूसरों से छल न करने या धोखा न देने का भाव।
5. ईश्वर के मंत्र जप - भगवान में गहरी आस्था, जो इरादों को मजबूत बनाए रखती है।
6. इन्द्रियों का निग्रह - स्वभाव, चरित्र और कर्म को साफ रखना।
7. प्रकृति की हर रचना में ईश्वर देखना - दूसरों के प्रति संवेदना और भावना रखना। भेदभाव, ऊंच नीच से परे रहना।
8. संतोष रखना और दोष दर्शन से बचना - जो कुछ आपके पास है उसका सुख उठाएं। अपने अभाव या सुख की लालसा में दूसरों के दोष या बुराई न खोजें। इससे आपवैचारिक दोष आने से सुखी होकर भी दु:खी होते है। जबकि संतोष और सद्भाव से ईश्वर और धर्म में मन लगता है।
9. ईश्वर में विश्वास - भगवान में अटूट विश्वास रख दु:ख हो या सुख हर स्थिति में समान रहना। स्वभाव को सरल रखना यानि किसी के लिए बुरी भावना न रखना। धार्मिक दृष्टि से स्वभाव, विचार और व्यवहार में इस तरह के गुणों को लाने से न केवल ईश्वर की कृपा मिलती है बल्कि सांसारिक सुख-सुविधाओं का भी वास्तविक आनंद मिलता है।

पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

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