Tuesday, November 3, 2015

!!!---: मनुष्य-शरीर में अनन्त अग्नियाँ :---!!1
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इस मानव-शरीर को "शरीर" इसलिए कहते हैं कि इसमें अग्नियाँ आश्रय पाती हैं---

"अग्नयो ह्त्र श्रियन्ते।" (गर्भोपनिषत्--5)

---ज्ञानाग्नि, दर्शनाग्नि, कोष्ठाग्नि । मनुष्य द्वारा खाए, पिए, चूसे हुए पदार्थों को पचाने वाली शक्ति का नाम "कोष्ठाग्नि" है । रूपों का दर्शन कराने वाली शक्ति का नाम "दर्शनाग्नि" है । शुभाशुभ कर्मों का लाभ कराने वाली शक्ति का नाम "ज्ञानाग्नि" है। इसी प्रकार आहवनीयाग्नि, गार्हपत्याग्नि, दक्षिणाग्नि, नाम तीन-तीन अग्नियाँ और भा आश्रय पाए हुए हैं, जिनके स्थान क्रमशः मुख, उदर और हृदय हैं---

"मुखे आहवनीयम्, उदरे गार्हपत्यो, हृदि दक्षिणाग्निः।"
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