Tuesday, November 3, 2015

🌹ऐसे थे कृष्ण ब्रह्मचारी एक बार महर्षि दुर्वासा यमुना जी के किनारे अपने 100 शिष्यो के साथ डेरा डाले हुये थे। गोपियों को पता चला कि दुर्वासा ऋषि आयें हुये हैं और वो यमुना के पार ठहरे हुये हैं। गोपियां ऋषि दुर्वासा के लियें व्यंजन आदि सेवा में समर्पित करना चाहती थी किन्तु यमुना जल अधिक था इसलिये पार करना कठिन था। जब गोपियों को कोई मार्ग न मिला तब वो अपने प्रिय कृष्ण के पास गई और अपनी समस्या बताई। श्री कृष्ण ने कहा- जाओ यमुना से कह दो, यदि कृष्ण आजीवन ब्रह्मचारी हैं तो यमुना हमें मार्ग दे दो। गोपियां मन ही मन में हंसी और सोचा अच्छा दिनभर हमारे पीछे घूमते हैं, रास रचाते हैं और अपने को आजीवन ब्रह्मचारी कह रहे हैं। किन्तु जो कृष्ण ने कहा वह गोपियों ने श्री यमुना जी से कह दिया और श्री यमुना जी ने भी मार्ग दे दिया। श्री यमुना जी को पार कर गोपियां ऋषि दुर्वासा के निकट गई और उन्हें भोजन कराकर जब चलनें लगी तब उन्होंने ऋषि दुर्वासा से कहा कि हम वापस कैसे जायें। ऋषि दुर्वासा ने पूछा आप लोग आयी कैसे थी उन्होंने श्री कृष्ण की बात बता दी तब ऋषि दुर्वासा बोले जाओ यमुना से कह दो- यदि दुर्वासा नित्य उपवासी हैं तो यमुना मार्ग दे दो। गोपियों को बहुत आश्चर्य हुआ कि इतने ढेर सारें व्यंजनों को ग्रहण करने के पश्चात भी ऋषि दुर्वासा अपनें आप को नित्य उपवासी कह रहें हैं किन्तु उन्होंने ऋषि की उपेक्षा न करते हुये यही वाक्य श्री यमुना जी से कह दिया और श्री यमुना जी ने गोपियों को वापस जानें का मार्ग दे दिया। और गोपियां वापस आ गयी। रास रचाने वाले श्री कृष्ण आजीवन ब्रह्मचारी और व्यंजनों को ग्रहण करने वाले ऋषि दुर्वासा नित्य उपवासी कैसे? रास रचाने वाले श्री कृष्ण और व्यंजनों को ग्रहण करने वाले ऋषि दुर्वासा अनासक्त होने के कारण कर्म करते हुये भी कर्मफल से मुक्त थे।
इस प्रसङ्ग पर कोई सन्देह न करे न तो प्रमाण मागे क्योकि मैं स्वयं उस समय दुर्वासा की शिष्य मण्डली में था।
जय श्री सीताराम।।🙏💐🌹🌷💐💐संकलित
पं सत्य प्रकाश तिवारी

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