प्रकृतिस्थोपि पुरुषो नाज्यते प्रकृतैर्गुणैः।
अविकारादकर्तृत्वान्निर्गुणत्वाज्जलार्कवत्।।
कपिल भगवान कहते हैं माताजी जिस तरह जल में प्रतिबिम्बित सूर्य के साथ जल के शीतलता चंचलता आदि गुणों का सम्बन्ध नही होता उसी तरह प्रकृति का कार्य शरीर में स्थित रहने पर भी आत्मा उसके सुख दुःख आदि धर्मो से लिप्त नही होता क्योंकि वह स्वभाव से निर्विकार अकर्ता और निर्गुण है।
अविकारादकर्तृत्वान्निर्गुणत्वाज्जलार्कवत्।।
कपिल भगवान कहते हैं माताजी जिस तरह जल में प्रतिबिम्बित सूर्य के साथ जल के शीतलता चंचलता आदि गुणों का सम्बन्ध नही होता उसी तरह प्रकृति का कार्य शरीर में स्थित रहने पर भी आत्मा उसके सुख दुःख आदि धर्मो से लिप्त नही होता क्योंकि वह स्वभाव से निर्विकार अकर्ता और निर्गुण है।
पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
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