शुभाशीषः ।🌺 यावत् तोयधराधरा धर धरा धारा धरा भूधरा । यावत् चारुसुचारु चारु चमरं चामीकरं चामरम् । यावत् रावण रामरामरमणं रामायणं श्रुयते । तावत् भोग विभोगभोगमतुलं भोगायते नित्यशः ।।
अर्थ भी देने का कष्ट करें।।
अर्थ भी देने का कष्ट करें।।
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