Wednesday, November 11, 2015

|| एक वार चन्द्रगुप्त ने अपने गुरु से पूछा कि गुरु जी ||


      

एक वार चन्द्रगुप्त ने अपने गुरु से पूछा कि गुरु जी
गन्ध सुवर्णे फल मिक्षुदन्डे नकारपुष्पम् खल चन्दनस्य।
विद्वान धनाडस्य नृपस्यचिरयु धातुः पूरा कोअपि बुद्धिअद्भूत्।।
अर्थः=व्रह्मा ने सोने को सुंदर वनाया परन्तु सुंगंध से वंचित कर दिया ईख पर फल नही लगाया चन्दन पर फूल नही लगाये विद्वान को धनी नही वनाया राजा को दीर्घजीवी नही वनाया इससे यह निश्चित होता है की पूर्व काल में परमेस्वर को कोई वुद्धि देने वाला नही होगा (चाणक्य नी0 9/3)
तो चाणक्य कहने लगे नही पुत्र ऐसा नही वल्कि इस्वर ने जो भी इन उपरोक्त विषयों पर कार्य किया वह बहुत ही सोच विचार कर किया है
           चाणक्य कहने लगे चन्द्रगुप्त इस्वर ने सोने को सुगन्धित इस लिए नही किया की सोने की सुरक्षा के लिये हानि हो सकती थी चोरों को खोजने की आवश्यकता नही होती वे सुगन्धि से ही पता करलेते की किस जगह सोना रखा हुआ है
               दूसरा कारण यह है कि हर सुगन्धित वस्तु उड़ती है इस कीमती सोने का आभूषड पति अपनी पत्नी के लिए वनवाता और एक महीने में ही चट्ट हो जाता(नष्ट हो जाता)
            ईख पर फल इसलिये नही लगाया की गन्ने को इतना मीठा होने के बाद भी उसका महत्व समाप्त हो जाता इस लिए यह कार्य भी प्रभु ने अपनी बुद्धिमत्त्वा से ही किया होगा
            इसी प्रकार चन्दन में स्वम् इतनी सुगन्धि समाहित कर दी की उसके सम्पर्क में आने वाली चीज भी सुगन्धित हो जाती है इस स्थिति में उस पर फूल भी ही
होता तो सभी की दृष्टि में यही होता की यह सुगन्धि पुष्प के कारण है लकड़ी के कारण नही इस लिए चन्दन पर फूल नही लगाया
          विद्वान को इसलिये धनाढ्य नही वनाया की वो अपने ज्ञान का प्रसार कहीँ नही करने जाता वल्कि ये उम्मीद करता की सभी मेरे ही यहां कर्म काण्ड करने के लिये आएं
        राजा को इसलिये दीर्घजीवी नही वनाया की पुत्र पुत्र आदि इंतजार करते करते मर जाते की हम कब राजा बनेंगे या फिर रजा अत्याचारी हो जाये और दीर्घ जीवि  हो तो न्यायिक व्यबस्था पर विपरीत प्रभाव पड सकता है
इस लिये चन्द्रगुप्त इस्वर ने जो भी कार्य किया वह बहुत ही बुद्धि मत्त्वत्ता से किया।।

पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830 

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