आडम्बर तीव्र गति से बढ़ रहे हैं- आध्यात्मिकता का लोप हो रहा है। मेरा भगवान तेरा भगवान-- भगवान बांट लिया। समुद्र में रहकर मछली प्यासी ही रही। कहते हैं कि संसार छोटा हो गया है। वास्तव में संसार छोटा हो गया है। हृदय छोटा हो गया है। सोच छोटी हो गई है, भावनाएँ समाप्त हो रही हैं। व्यावसायिकता हावी हो रही है। स्वार्थ के सिवाय कुछ दिखता ही नहीं। परमात्मा के सच्चे स्वरूप का चिन्तन होगा तो आचरण होगा। आचरण होगा तो धर्म होगा, धर्म होगा तो सुख होगा। सुख होगा तो शांति होगी, आनन्द होगा। ईश्वर के स्वरूप को जाने बिना वैर भाव की समाप्ति नहीं होगी।
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पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
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