Friday, November 27, 2015

|| विहान हुआ ||


      


विहान हुआ
जागो! विहान हुआ!
तम से नाता तोड़ो,
प्राची को मुख मोड़ो।
आगे प्रयाण करो,
पीछे को मत दौड़ो।
लेकर आदर्श यही,
मारुत गतिमान हुआ।।
जागो! विहान हुआ!
असत को न सत जानो,
तम-शासन मत मानो।
कहता है नया दिवस,
अपने को पहचानो।
क्षणभंगुर रजनी का,
देखो, अवसान हुआ।।
जागो! विहान हुआ!
सागर का जल जागा,
खग-कोलाहल जागा।
उषा जगी, दिशा जगी,
नभ जागा, तल जागा।
उठो-उठो! कर्मवीर!
युग का आह्वान हुआ।।
जागो! विहान हुआ!
जग में जो सोते हैं,
खोते ही खोते हैं।
जीवन में बिना ब्याज,
कण्टक ही बोते हैं।
क्रियाशील को सदैव,
हर पल वरदान हुआ।।
जागो! विहान हुआ!
निद्रा-प्रमाद तजो,
कल का विषाद तजो।
सपनों की संसृति से,
झूठा विवाद तजो।
देता आदेश यही,
उदित अंशुमान हुआ।।
जागो! विहान हुआ!

पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

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