Saturday, April 9, 2016

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>सच्चा सुख आनन्द <

एक बार माता देवहूति ने  भगवान कपिल से प्रश्न किया - जगत मेँ सच्चा सुख आनन्द कहाँ है और उसे पाने का साधन क्या है ?

कपिल भगवान ने कहा --
माता, किसी जड वस्तु मे आनन्द नहीँ रह सकता । आनन्द तो आत्मा का स्वरुप है । अज्ञानवश जीव जड वस्तु मे आनन्द खोजता है । संसारिक विषय सुख तो देते है किन्तु आनन्द नही देते । जो तुम्हेँ सुख देगा वह दुःख भी देगा किन्तु भगवान हमेशा आनन्द ही देते है , आनन्द परमात्मा का स्वरुप है ।

मित्रो सांसारिक सुख तो शरीर की खुजली जैसा है कि जब तक आप खुजलाते रहेगे तब अच्छा लगेगा । किन्तु खुजाने से नाखून के जहर के कारण खुजली का रोग बढता जाता है ।सर्वोत्तम मिठाई का स्वाद भी जिह्वा तक ही रहता है ।

जगत के पदार्थो मेँ आनन्द नही है , उसका आभासमात्र है ।यह जगत दुःख रुप है .,..,...गीता के अनुसार
"अनित्यं असुखं लोकं इमं प्राप्य भजस्व माम् ।"
हे अर्जुन ! क्षणभंगुर और सुखरहित इस जगत को और मनुष्य शरीर प्राप्त करके तू मेरा ही भजन कर ।
आरम्भ मे तोजड वस्तु मे भी सुख का अनुभव होता है किन्तु वह विषमय ही है -
" विषयेन्द्रियसंयोगाद्यत्तदग्रेऽमृतोपमम् ।
परिणामे विषमिव तत्सुखं राजसम् स्मृतम् ।"
गीता 18/ 38 ।
विषयो और इन्द्रियो के संयोग से जो सुख उत्पन्न होता है , वह आरम्भ मेँ (भोगकाल मे)तो अमृत जैसा लगता है किन्तु परिणाम की दृष्टि से विष के समान ही है । इसे राजस सुख कहा गया है ।🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩👏👏👏 शुभरात्रि👏👏👏

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