Friday, April 29, 2016

जीवन-मर्म

        केवल तन ही नहीं "प्रभु" ने, अतिशय कृपा कर, हमें मन, बुद्धि, अहंकार आदि अन्य सुविधाओं से भी अलंकृत किया. जिसका प्रदर्शन हम आजीवन करते रहते हैं. इसके अतिरिक्त उनकी सबसे महान कृपा जो हम सब को यथा समय प्राप्त होती है वह है सद्गुरु मिलन.
        तुलसी के शब्दों में "बिनु हरि कृपा मिलहिं नहिं संता". इस प्रकार हरि कृपा से संतों के दर्शन होते हैं. सत्संगों से साधना प्रेरित होती है और अन्ततोगत्वा सच्चे साधकों को, प्रभु की कृपा से, सद्गुरु मिल ही जाता है और "गुरु पद पंकज सेवा " करके उन्हें "नवधा भक्ति" का एक और लक्ष्य प्राप्त हो जाता है.

सच्चे साधकों पर कितनी कृपा करते हैं "भगवान्" ! अब तो केवल यही कामना है कि प्रभु हमें सच्चा साधक बनाएं। हम समवेत स्वरों में, यह प्रार्थना प्रभु के श्री चरणों पर अर्पित करें -
"हे प्रभु मुझको दीजिये, अपनी लगन अपार
अपना निश्चय अटल रहे, अतुल्य अपना प्यार
शरणागत जन जानि कै कीजै मंगल दान
नमो नमो भगवान तू मंगल-दयानिधान।
Edited पं.मंगलेश्वर त्रिपाठी 🌻🌻

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