Friday, April 29, 2016

!! परमात्म स्वरूप !!
--------------------------
मो सम कौन कुटिल खल कामी
        यह बात अन्तःकरण के प्रथम सोपानीय अज्ञानस्थ 'मन' के भाव की है। अज्ञानी मन यह तीन भाव हैं— कुटिल, खल और कामी। इनकी तुलना स्वरूप से की जा रही है।भागवत्माहात्म्य का प्रथम श्लोक है- "सच्चिदानन्दरूपाय विश्वोत्पत्त्याय हेतवे।" यहाँ सच्चिदानन्द भगवान का निरूपण हुआ है, जिनसे सृष्टि का उन्मेष होते ही, सर्व-प्रथम स्वरूप-लक्षण का ही प्रकाशन होता है। स्वरूप के आविर्भाव के बाद ही स्वभाव का विकास होता है। दूसरे शब्दों में पिण्ड का वाचक सत् प्रकट होता है और उसके पश्चात् ही चित् विकास होता है। इसप्रकार स्वरूप आदिम मूल तत्त्व है, प्रकृत तत्त्व है, जिसकी परवर्त्ती विकृति है, स्वभाव-तत्त्व। परंतु उस अनादि आदिम महाविंदु काल में, महाकारणाऽन्तर्गत घटना होने के कारण यह दोनों ही सृष्टि के मौलिक उपादान कहे जाते हैं।
        इसप्रकार स्वरूप का प्राकट्य होने के पश्चात्, उसमें संस्कार की आवश्कता भी एक स्वाभाविक अनिवार्यता है। एक शिशु स्वरूप अवस्था में ही जन्म लेता है, जिसे समयानुसार संस्कारित करते हुए ही महान व्यक्ति के रूप में ढाला जा सकता है। अन्यथा उसके व्यवहार अज्ञानपूर्ण ही रहेंगे।

No comments:

Post a Comment