Saturday, April 9, 2016

पारिजात या 'हरसिंगार' उन प्रमुख वृक्षों में से एक है, जिसके फूल ईश्वर की आराधना में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इसे प्राजक्ता, परिजात, हरसिंगार, शेफालिका, शेफाली, शिउली भी कहा जाता है। उर्दू में इसे गुलज़ाफ़री कहा जाता है। हिन्दू धर्म में इस वृक्ष को बहुत ही ख़ास स्थान प्राप्त है। पारिजात का वृक्ष बड़ा ही सुन्दर होता है, जिस पर आकर्षक व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग विविध प्रकार की औषधि आदि के रूप में भी किया जाता है। यह सारे भारत में पैदा होता है। यह माना जाता है कि पारिजात के वृक्ष को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है।

परिचय

पारिजात का वृक्ष दस से पन्द्रह फीट ऊँचा होता है। किसी-किसी स्थान पर इसकी ऊँचाई पच्चीस से तीस फीट तक भी होती है। यह वृक्ष सम्पूर्ण भारत में उगता है। विशेष रूप से पारिजात बाग-बगीचों में लगा हुआ मिलता है। इसके फूल बड़े ही आकर्षक होते हैं। इस वृक्ष की यह विशेषता भी है कि इसमें फूल बहुत बड़ी मात्रा में लगते हैं। चाहे फूल प्रतिदिन तोड़े जाएँ, किंतु फिर भी अगले दिन फूल बड़ी मात्रा में लगते हैं। यह वृक्ष मध्य भारत और हिमालय की नीची तराइयों में अधिक पैदा होता है।

पौराणिक उल्लेख

'हरिवंशपुराण' में एक ऐसे वृक्ष का उल्लेख मिलता है, जिसको छूने से देव नर्तकी उर्वशी की थकान मिट जाती थी। एक बार नारद मुनि इस वृक्ष से कुछ फूलइन्द्र लोक से लेकर कृष्ण के पास आये। कृष्ण ने वे फूल लेकर पास बैठी अपनी पत्नी रुक्मणी को दे दिये। इसके बाद नारद कृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा के पास गए और उनसे यह सारी बात बतायी। सत्यभामा को नारद ने बताया कि इन्द्र लोक के दिव्य फूल कृष्ण ने रुक्मणी को दे दिए हैं। यह सुन कर सत्यभामा को क्रोध आ गया और उन्होंने ने कृष्ण के पास जा कर कहा कि उन्हें पारिजात का वृक्ष चाहिए। कृष्ण ने कहा कि वे इन्द्र से पारिजात का वृक्ष अवश्य लाकर सत्यभामा को देंगे।
 नारद जी इस तरह से झगड़ा लगा कर इन्द्र के पास आये और कहा कि स्वर्ग के दिव्य पारिजात को लेने के लिए कुछ लोग मृत्यु लोक से आने वाले हैं, पर पारिजात का वृक्ष तो इन्द्र लोक की शोभा है और इसे यहीं रहना चाहिए। जब कृष्ण सत्यभामा के साथ इन्द्र लोक आये तो इन्द्र ने पारिजात को देने का विरोध किया, पर कृष्ण के आगे वे कुछ न कर सके और पारिजात उन्हें देना ही पड़ा, लेकिन उन्होंने पारिजात वृक्ष को श्राप दे दिया कि इसका फूल दिन में नहीं खिलेगा। कृष्ण सत्यभामा की जिद के कारण पारिजात को लेकर आ गए और उसे सत्यभामा की वाटिका में लगा दिया गया। किंतु सत्यभामा को सीख देने के लिए ऐसा कर दिया कि वृक्ष तो सत्यभामा की वाटिका में था, लेकिन पारिजात के फूल रुक्मणी की वाटिका में गिरते थे। इस तरह सत्यभामा को वृक्ष तो मिला, किंतु फूल रुक्मणी के हिस्से आ गए। यही कारण है पारिजात के फूल हमेशा वृक्ष से कुछ दूर ही गिरते हैं।

मान्यता

एक अन्य मान्यता यह भी है कि 'पारिजात' नाम की एक राजकुमारी हुआ करती थी, जिसे भगवान सूर्य से प्रेम हो गया था। लेकिन अथक प्रयास करने पर भी भगवान सूर्य ने पारिजात के प्रेम कों स्वीकार नहीं किया, जिससे खिन्न होकर राजकुमारी पारिजात ने आत्महत्या कर ली। जिस स्थान पर पारिजात की क़ब्र बनी, वहीं से पारिजात नामक वृक्ष ने जन्म लिया। इसी कारण पारिजात वृक्ष को रात में देखने से ऐसा लगता है, जैसे वह रो रहा हो। लेकिन सूर्य उदय के साथ ही पारिजात की टहनियाँ और पत्ते सूर्य को आगोष में लेने को आतुर दिखाई पडते हैं। ज्योतिष विज्ञान में भी पारिजात का विशेष महत्व बताया गया है।

देवी लक्ष्मी को प्रिय है पारिजात पुष्प

धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के पुष्प प्रिय हैं। उन्हें प्रसन्न करने में भी पारिजात वृक्ष का उपयोग किया जाता है। यदि "ओम नमो मणिंद्राय आयुध धराय मम लक्ष्मी़वसंच्छितं पूरय पूरय ऐं हीं क्ली हयौं मणि भद्राय नम:" मन्त्र का जाप 108 बार करते हुए नारियल पर पारिजात पुष्प अर्पित किये जाएँ और पूजा के इस नारियल व फूलों को लाल रंग कपड़े में लपेटकर घर के पूजा घर में स्थापित किया जाए तो लक्ष्मी सहज ही प्रसन्न होकर साधक के घर में वास करती हैं। यह पूजा वर्ष के पाँच शुभ मुहर्त- होली, दीवाली, ग्रहण, रवि पुष्प तथा गुरु पुष्प नक्षत्र में की जाए तो उत्तम फल प्राप्त होता है। "यह तथ्य भी महत्त्वपूर्ण है कि पारिजात वृक्ष के वे ही फूल उपयोग में लाए जाते हैं, जो वृक्ष से टूटकर गिर जाते हैं। अर्थात वृक्ष से फूल तोड़ना पूरी तरह से निषिद्ध है।"

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