Sunday, April 10, 2016

हरिः ॐ तत्सत्!  सुप्रभातम्।
सर्वेभ्यो भक्तेभ्यो देवभाषारसरसिकेभ्यश्च नमो नमः।

श्रीभगवन्तः श्रीमद्भवद्गीतायामुपदिशन्ति...

"या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः॥
(२/६९)

सर्वभूतानां प्राणीनां वा साधारणमुषयाणां या निशा वर्तते, अर्थाद्यत्र मनुष्याः परमात्मनः सर्वथा विमुखाः सन्ति, तस्यां रात्रौ संयमी मनुष्यो जागर्त्यर्थात्परमात्मानमनुभवति। यस्यां च रात्रौ साधरणमनुष्या जाग्रत्यर्थाद्भोगेषु संग्रहेषु चातीव तत्परा भवन्ति, सा तु परमात्मानं जानतो मननशीलस्य मनुष्यस्य दृष्टौ रात्रिः (तम ) एवास्ति।

सम्पूर्ण प्राणियों की जो रात है अर्थात् परमात्मा से जो उनकी विमुखता है, उसमें संयमी मनुष्य जागता है अर्थात् जो भगवत्प्रेमरसका सदा रसिक है।
जिसमें (सत्संग-सच्चिन्तन से विमुख) सारे प्राणी जागते हैं अर्थात् सदा विषय-भोग और नश्वरधनादिसंग्रह में ही रत हैं, वह तत्त्वदर्शीमहापुरुष की दृष्टि में रात्रि है।

नश्वरविषयभोग और भौतिकचकाचौंध की अंधीदौड़ में अधिकाधिक लोग रात-दिन अपना बहुमूल्य मानव-जीवन और समय व्यर्थ कर रहें हैं।(यही रात्रि है)

किन्तु श्रीगुरुगोविन्द की कृपा सदुपदेश रूपी अमोघ कवच से जो जन सदा आच्छादित हैं, वे सानन्द जीवन को धारण कर सद्गति को प्राप्त करते हैं।( यही जागरण है)

☀सत्यसनातनधर्मो विजयतेतराम्☀
पं मंगलेश्वर त्रिपाठी

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