Saturday, April 16, 2016

[14/04 8:32 AM] Pandit Mangleshwar Tripadhi: ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:श्रीमद्भगवतो महापुरूषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे श्रीरामक्षेत्रे परशुरामाश्रमे दण्डकारण्यदेशे पुण्यप्रदेशे महाराष्ट्रमहामण्डलान्तर्गते  कोपरखैरणेग्रामे गोदावर्या: दक्षिणदिङ्भागे श्रीमल्लवणाब्धे सिन्धुतीरे
श्रीसंवत् द्वयसहस्त्र त्रयोसप्तति:शालिवाहनशाकेऽस्मिन् वर्तमाने सौम्य नामसंवत्सरे श्रीसूर्ये उत्तरायणे वसन्तर्तोः महामांगल्यप्रदेचैत्रमासे शुभेशुक्लपक्षे अष्टम्यांतिथौ श्रीगुरूवासरान्वितायाम् पुनर्वसुनक्षत्रे सुकर्मायोगे ववकरणे कर्कराशौ स्थितेश्रीचन्द्रे मेषराशिस्थितेश्रीसूर्ये शेषेषुग्रहेषु भौम बुध गुरू शुक्र शनि राहु केत्वादि यथायथा राशिस्थितेेषु  सत्सु एवंगुणविशेषण विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ, नाना नामगोत्रोत्पन्नो शर्मा/वर्मा/गुप्तो/दासो वा  सपत्नीको यजमानोऽहम् --मम आत्मन:श्रुति स्मृति पुराणोक्त पुण्य फल प्राप्त्यर्थम् धर्माऽर्थ काम मोक्ष पुरूषार्थचतुष्टयप्राप्त्यर्थं अप्राप्तलक्ष्मीप्राप्त्यर्थं प्राप्तलक्ष्म्याः चिरकालसंरक्षणार्थम् एेश्वर्याभिः वृद्'ध्यर्थं सकल इप्सित कामना संसिद्'ध्यर्थम् लोके सभायां राजद्वारे वा सर्वत्र विजयलाभादि प्राप्त्यर्थं इह जन्मनिजन्मान्तरे वा सकल दुरितोपशमनार्थं मम सभार्यस्य सपुत्रस्य सबान्धवस्य अखिलकुटुम्बसहितस्य सपशो: समस्त भय व्याधि जरा पीड़ा मृत्यु परिहार द्वारा आयु: ऐश्वर्याभि वृद्'ध्यर्थं मम जन्मराशे: अखिलकुटुम्बस्य वा जन्मराशे: सकाशात् केचिद् विरूद्ध चतुर्थाऽष्टमद्वादशस्थानस्थित क्रूर ग्रहा: तै: सूचितम् सूचयिष्यमाणं च यत् सर्वाऽरिष्टं तद्विनाशद्वारा एकादश स्थान स्थितिवत् शुभफल प्राप्त्यर्थं पुत्रपौत्रादि सन्तते: अविच्छिन्न वृद्धि अर्थं आदित्यादि नवग्रहाणां अनुकूलता सिद्धि अर्थं इन्द्रादि दशदिक्पालानां प्रसन्नता सिद्धि अर्थं आधिदैहिक आधिभौतिक आध्यात्मिक त्रिविधतापोपशमनार्थं तथा च चिकणेश्वरमहादेव सन्निधौ अस्मिन  क्रीडांगणे उत्तरापथगामिनि चेरिटेबलट्रष्ट नाम्न्या संस्थया आयोजिते तृतीयदिवसे हवनात्मके चण्डीमहायज्ञे भगवती महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती राजराजेश्वरी कुलदेवी स्वरूपाणां कृपाप्राप्ति हेतवे ब्राह्मणैः क्रमेण कवच अर्गला कीलक नवार्णमंत्र अष्टोत्तरशतजप पूर्वकस्य नवार्णमंत्र अष्टोत्तरशतजप देवीसूक्त रहस्यत्रयान्तस्य मार्कण्डेय पुराणान्तर्गत मार्कण्डेय उवाचात् आरभ्य सावर्णिर्भविता मनु: पूर्णया: नित्यादिने यथावृत्ति दुर्गा सप्तशती पाठाख्यंकर्म तत् हवानादिकर्म संपूर्णफलवाप्तये  दुर्गा सप्तशत्या:प्रतिमंत्रेण हविर्द्रव्यै: जप हवन पूर्वकं हवनात्मक चण्डी महायाज्ञाख्यं कर्मोऽहम् करिष्ये। अद्यदिवसे शुभ वेलायां मंगलवेलायां प्रातःकालेऽस्मिन् मण्डपाऽभ्यान्तरे तदंगभूतं निर्विघ्नता सिध्यर्थम् गणपतिपूजनं तथा च वसोर्धारा सहित सगणेशगौर्यादि मातॄणां पूजनं तथा च ब्राह्मण वरणं च करिष्ये। तत्रादौ आसनविधि दिग्रक्षणं कलशार्चनम् दीपपूजनं आकाशमण्डले सूर्यपूजनं शंख घण्टार्चनं उत्तरे हनुमत ध्यानं दक्षिणे कालभैरव ध्यानं च करिष्ये। सर्वेषां देवानां सर्वाषाम्देवीनां ध्यायामि यथालब्ध सामग्रीभि: पूजनं   शिख्यादिवास्तुमंण्डलस्थ देवानां ध्यानम् पूजनं महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वती समन्विता चतुष्षष्टियोगिनीदेवता: ध्यायामि पूजनं एकोऽनपंचाशत् अजरादि क्षेत्रपाल मण्डल देवता ध्यानम् पूजनम् असंख्यातरूद्र सहित नवग्रहाणां मण्डलस्थ देवानां ध्यानम् पूजनं स्तंभादि द्वारतोरण ध्वज पूजनं तथा च कुण्डस्थदेवतापूजन सहित अग्निस्थापनं पूजनं श्रीगौरीतिलकमण्डल देवानां ध्यानम् पूजनं वन्दनं च करिष्ये !
[14/04 2:37 PM] Pandit Mangleshwar Tripadhi: !! जय मता दी !!
श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया॥
नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है। नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। ४ भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है इनको।
इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बांए हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है। पति रूप में शिव को प्राप्त करने के लिए महागौरी ने कठोर तपस्या की थी। इसी वजह से इनका शरीर काला पड़ गया लेकिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कांतिमय बना दिया। उनका रूप गौर वर्ण का हो गया। इसीलिए यह महागौरी कहलाईं।
यह अमोघ फलदायिनी हैं और इनकी पूजा से भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी का पूजन-अर्चन, उपासना-आराधना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।जय माता दी

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