Saturday, April 9, 2016

"राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर॥"
गोस्वामीजी कहते हैं, यदि तू भीतर और
बाहर दोनों ओर उजाला चाहता है तो
मुखरूपी द्वारकी जिह्वारूपी देहलीपर
'राम' नामरूपी मणि-दीपकको रख॥

"राम एव परं ब्रह्म राम एव परं तपः।
राम एव परं तत्त्वं श्रीरामो ब्रह्म तारकम्॥
हरिः शरणम्।

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