Saturday, April 9, 2016

करंज औषधी-: नाम से प्राय: तीन वनस्पति जातियों का बोध होता है, जिनमें दो वृक्ष जातियाँ और तीसरी लता सदृश फैली हुई गुल्म जाति है। इन तीनों जातियों का परिचय निम्नांकित है-
नक्तमाल-:
प्रथम वृक्ष जाति को, जो प्राचीनों का संभवत: वास्तविक करंज है। संस्कृत वाङ्‌मय में 'नक्तमाल', 'करंजिका' तथा 'वृक्षकरंजादि' और लोक भाषाओं में 'डिढोरी', 'डहरकरंज' अथवा 'कणझी' आदि नाम दिए गए हैं। इसका वैज्ञानिक नाम 'पोंगैमिया ग्लैब्रा' है, जो लेग्यूमिनोसी कुल एवं पैपिलिओनेसी उपकुल में समाविष्ट है। यद्यपि परिस्थिति के अनुसार इसकी ऊँचाई आदि में भिन्नता होती है, परंतु विभिन्न परिस्थितियों में उगने की इसमें अद्भुत क्षमता होती है। इसके वृक्ष अधिकतर नदी नालों के किनारे स्वत: उग आते हैं, अथवा सघन छायादार होने के कारण सड़कों के किनारे लगाए जाते हैं।[4]

इसके पत्र पक्षवत्‌ संयुक्त, असम पक्षवत्‌ और पत्रक गहरे हरे, चमकीले और प्राय: 2-5 इंच लंबे होते हैं। पुष्प देखने में मोती सदृश, गुलाबी और आसमानीछाया लिए हुए श्वेत वर्ण के होते हैं। फली कठोर एवं मोटे छिलके की, एक बीज वाली, चिपटी और टेढ़ी नोंक वाली होती है। पुष्पित होने पर इसके मोती तुल्य पुष्प रात्रि में वृक्ष के नीचे गिरकर बहुत सुंदर मालूम होते हैं। 'करंज' एवं 'नक्तमाल' संज्ञाओं की सार्थकता और काव्यों में प्रकृति वर्णन के प्रसंग में इनका उल्लेख इसी कारण होता है। आयुर्वेदीय चिकित्सा में मुख्यत: इसके बीज और बीजतैल का प्रचुर उपयोग बतलाया गया है। इनका अधिक उपयोग घ्राणशोधक, कृमिघ्न, उष्णवीर्य तथा चर्म रोगघ्न रूप में किया जाता है।

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