Saturday, April 9, 2016

.                              राष्ट्र-गान का मर्म
"जन-गण-मन-अधिना़क जय हे, भारत-भाग्य-विधाता", अर्थात् "हे जनता-जनार्दनवृंद के अधिनायकरूपी मन (हृदय) ! तुम सबकी जय हो जो अपने मत के निमित्त से भारत के भाग्य-विधाता हैं।"
इसका विलोम कि यदि यह बिकाऊ हुए तो दुर्भाग्य-विधाता भी हो सकते हैं। तो आप तय करें कि आप स्वयं को कैसी जनता के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं ? --SKMishra.shoaqh
जयतु भारतः।

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