समिधा
------
वाशिष्ठी हवन पद्धति में कुछ अन्य समिधाओं का वर्णन है । उसमें ग्रहों तथा देवताओं के हिसाब से भी कुछ समिधाएँ बताई गई हैं । तथा विभिन्न वृक्षों की समिधाओं के फल भी अलग-अलग कहे गये हैं । यथा-
नोः पालाशीनस्तथा ।
खादिरी भूमिपुत्रस्य त्वपामार्गी बुधस्य च॥
गुरौरश्वत्थजा प्रोक्त शक्रस्यौदुम्बरी मता ।
शमीनां तु शनेः प्रोक्त राहर्दूर्वामयी तथा॥
केतोर्दभमयी प्रोक्ताऽन्येषां पालाशवृक्षजा॥१॥
आर्की नाशयते व्याधिं पालाशी सर्वकामदा ।
खादिरी त्वर्थलाभायापामार्गी चेष्टादर्शिनी ।
प्रजालाभाय चाश्वत्थी स्वर्गायौदुम्बरी भवेत ।
शमी शमयते पापं दूर्वा दीर्घायुरेव
च ।
कुशाः सर्वार्थकामानां परमं रक्षणं विदुः ।
यथा बाण हारणां कवचं वारकं भवेत ।
तद्वद्दैवोपघातानां शान्तिर्भवति वारिका॥
यथा समुत्थितं यन्त्रं यन्त्रेण प्रतिहन्यते ।
तथा समुत्थितं घोरं शीघ्रं शान्त्या प्रशाम्यति॥३॥
–वाशिष्ठी हवन पद्धति
ऋतुओं के अनुसार समिधा के लिए इन वृक्षों की लकड़ी विशेष उपयोगी सिद्ध होती है ।
वसन्त-शमी
ग्रीष्म-पीपल
वर्षा-ढाक, बिल्व
शरद-पाकर या आम
हेमन्त-खैर
शिशिर-गूलर, बड़
यह लकड़ियाँ सड़ी घुनी, गन्दे स्थानों पर पड़ी हुई, कीडे-मकोड़ों से भरी हुई न हों, इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना
चाहिए ।
–जय श्रीमन्नारायण।
सं.🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹
No comments:
Post a Comment