Tuesday, October 6, 2015

|| अमृत दोहावली ||

अमृत दोहावली
पानी बाढ़े नाम में घर में बाढ़े दाम।
दोनों हाथ उलीचिए, यही सयानो काम।।1।।
बिना मागे दे दूध बराबर मांगे दे सो पानी।
वह देना है खून बराबर जामें खेंचा तानी।।2।।
चोरी करे निहाई की सूई का देते दान।
ऊपर चढ़कर देखते कितनी दूर विमान।।3।।
कोई मरकर देता है कोई देकर मरता है।
जरा से फर्क से बनते ज्ञानी और अज्ञानी।
अगर धन की रक्षा है मंजूर तो धनवालो बनो दानी।
कुंए से गर नहं निकला तो सड जायेगा पानी।।4।।
मर जाऊ मांगू नहिं अपने तन के काज।
पर स्वरथ के कारणे मोहे न आवे लाज।।5।।
त्याग तरण-तारण सही भव सागर में नाव।
त्याग बने नहिं देव पै मनुज लहो यह दाव।।6।।
उत्तम त्याग करै जो कोई, भोग भूमि-सुर-शिवसुख होई।
चार प्रकार दान जो देय, वह नरभव को लाहो लेय।।7।।
जिसे न भाता अन्य का, पर को देना दान।
मांगेगी उस नीच की, अन्न-वस्त्र संतान।।8।।

एक अतिथि को पूंज, जोकर पर की बाट।
बनता वह सुर वर्ग का, सुप्रिय अतिथि सम्राट।।9।।
जोकरता है बांटकर, भोजन का उपभोग।
कभी न व्यापै भूख का, उसे भयंकर रोग।।10।।



पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830 

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