"श्रध्दया पितृन उद्दिश्य विधिना क्रियते
यत्कर्म तत् श्राध्दम्।।
पितरो के उद्देश्य से विधिपूर्वक जो कर्म
श्रद्धा से किया जाता हे उसे श्राद्ध
कहते हे,इसे ही पितृ यग्य भी कहते हे।
जिसका वर्णन मनुस्मृति आदि धर्म
शास्त्रों,पुराणों तथा वीरमित्रोदय,
श्राद्धकल्पलता,श्राद्धतत्व,पितृदयिता
आदि अनेक ग्रंथो में प्राप्त होता हे।
जो प्राणी विधिपूर्वक शांत मन होकर
श्राद्ध करता हे वह सभी पापो से मुक्त
होकर फिर संसार चक्र में नहीं आता।
आयु: प्रजां धनं विद्यां स्वर्ग मोक्ष
सुखानि च।
प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितर: श्राद्ध
तर्पिता:।। {मार्कणडेय पुराण}
अर्थात श्राद्ध से संतुस्ट होकर पित्रगण
श्राद्ध करता को दिर्घ आयु,सन्तति,धन
विद्या,राज्य,सुख,स्वर्ग और मोक्ष
प्रदान करते हे।
श्राद्ध न करने से हानि..........
………{ब्रह्मपुराण के अनुसार}..........
श्राद्धं न कुरुते मोहात् तस्य रक्तं
पिबन्ति ते।।
श्राद्ध न करने वाले को पग पग पर
कष्ट का सामना करना पढता हे।
मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने
वाले अपने सगे संबंधियो का
रक्त(खून) चूसने लगते हे।।
...…...{नागरखंड के अनुसार}………
"पितरस्तस्य शापं दत्वा प्रयान्ति च।
शाप भी देते हे-
उस परिवार में पुत्र नहीं उत्पन्न होता,
कोई निरोग नहीं रहता,लम्बी आयु नहीं
होती,किसी तरह कल्याण नहीं प्राप्त
होता और मरने के बाद नर्क में जाना
पढ़ता हे।
....ब्राहम्ण भोजन से श्राद्ध की पूर्ति....
........{अथर्ववेद 4/38/8पर}………
इममोदनं नि दधे ब्रह्मणेषु विस्टारिणं
लोकजीतम् स्वर्गम्।।
वेद ने बताया हे की ब्राह्मणों को
भोजन कराने से भी वह पितरों को
प्राप्त हो जाता हे।।
………{मनुस्मृति के अनुसार}………
यस्यास्येन सदाशन्ति हव्यानि
त्रिदिवौकस:।
काव्यानि चैव पितर: किं भुतमधिकम्
तत:।।
अर्थात ब्राहमण के मुख से देवता हव्य
को और पितर कव्य को खाते हे।
...…....{पद्मपुराण के अनुसार}…….…
यदि किसी के पास पितृ तर्पण और
ब्राहमण भोजन के किये राशि न हो
तो ऐसी परिस्थिति में शास्त्र ने बताया
हे की घास से भी श्राद्ध हो शकता हे।
अर्थात गाय माता को घास काट कर
खिला देवे। पितृ तृप्त हो जाएंगे।।





पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
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