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धर्म संविधान है कर्म के विधान का |
आत्मज्ञान जान इसे घूँट घूँट पीजिए ||
बंधन से मुक्त कर्म जागृत हो स्वाभिमान |
जीवन धन मान इसे आत्मसात कीजिये ||
अमृत पी देव बने विष पी कर महादेव |
परहित से हित अपना पहचान लीजिए ||
चिंतन मनमंथन है अंतर परिवर्तन का |
तन मन पर संयम की डोर बाँध दीजिए ||
मन में संकल्प रहे तन में संधान रहे|
सुख दुःख को सावन की रैन मान भीगिये ||





पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
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