Saturday, October 3, 2015

|| श्रीगुरु चरण कमलेभ्यो नमः ||

🌹🌹💐श्रीगुरु चरण कमलेभ्यो नमः🙏🌹❤🙏🌷💚💐समिधा का अर्थ है वह लकड़ी जिसे जलाकर यज्ञ किया जाए अथवा जिसे यज्ञ में डाला जाए .

नवग्रह
सूर्य की समिधा मदार की, चन्द्रमा की पलाश की, मङ्गल की खैर की, बुध की चिड़चिडा की, बृहस्पति की पीपल की, शुक्र की गूलर की, शनि की शमी की, राहु दूर्वा की और केतु की कुशा की समिधा कही गई है।

मदार की समिधा रोग को नाश करती है, पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली, पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु देने वाली और कुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है।

इनके अतिरिक्त देवताओं के लिए पलाश वृक्ष की समिधा जाननी चाहिए।

ऋतुओं के अनुसार समिधा[1]
ऋतुओं के अनुसार समिधा के लिए इन वृक्षों की लकड़ी विशेष उपयोगी सिद्ध होती है।

वसन्त-शमी

ग्रीष्म-पीपल

वर्षा-ढाक, बिल्व

शरद-पाकर या आम

हेमन्त-खैर

शिशिर-गूलर, बड़

यह लकड़ियाँ सड़ी घुनी, गन्दे स्थानों पर पड़ी हुई, कीडे़-मकोड़ों से भरी हुई न हों, इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।
समिधा का मुख्य उपयोग अग्नि देव के प्राकट्य के लिए किया जाता है लैकिन अगर मन्त्र के प्रभाव से अग्नि देव और स्वाहा देवी का आवाहन करके आज्य की आहुति प्रदान कि जाय तो काष्ठ के अंदर निवास करने वाले जीवों के वध से छुटकारा मिल सकता है।

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