है प्रेम जगत में सार और कुछ सार नहीं
तू कर ले प्रभु से प्यार और कुछ प्यार नहीं
कहा घनश्याम ने उधो से वृन्दावन जरा जाना
वहाँ की गोपियों को ज्ञान का कुछ तत्व समझाना
विरह की वेदना में वे सदा बेचैन रहती हैं
तडप कर आह भर कर और रो रोकर ये कहती हैं
है प्रेम जगत में सार...................................
कहा उधो ने हँसकर मैं अभी जाता हूँ वृन्दावन
ज़रा देखूं कि कैसा है कठिन अनुराग का बँधन
है कैसी गोपियाँ जो ज्ञान बल को कम बताती हैं
निरर्थक लोक लीला का यही गुणगान गाती हैं
है प्रेम जगत में सार...................................
चले मथुरा से जब कुछ दूर वृन्दावन निकट आया
वहीँ से प्रेम ने अपना अनोखा रंग दिखलाया
उलझ कर वस्त्र में कांटे लगे उधो को समझाने
तुम्हारा ज्ञान पर्दा फाड़ देंगे प्रेम दीवाने
है प्रेम जगत में सार...................................
विटप झुक कर ये कहते थे इधर आओ इधर आओ
पपीहा कह रहा था पी कहाँ यह भी तो बतलाओ
नदी यमुना की धारा शब्द हरि हरि का सुनाती थी
भ्रमर गुंजार से भी ये मधुर आवाज़ आती थी
है प्रेम जगत में सार......................................
गरज पहुंचे वहाँ था गोपियों का जिस जगह माडल
वहाँ थीं शांत पृथ्वी वायु धीमी थी निर्मल
सहस्त्रों गोपियों के मध्य में श्री राधिका रानी
सभी के मुख से रह रह कर निकलती थी यही वाणी
है प्रेम जगत में सार.....................................
कहा उधों ने यह बढ़कर कि मैं मथुरा से आया हूँ
सुनाता हूँ संदेसा श्याम का जो साथ लाया हूँ
कि जब यह आत्मसत्ता ही अलख निर्गुण कहाती है
तो फिर क्यों मोह वश होकर वृथा यह गान गाती है
है प्रेम जगत में सार.....................................
कह श्री राधिका ने तुम संदेसा खूब लाये हो
मगर ये याद रक्खों प्रेम की नगरी में आये हो
संभालो योग की पूँजी ना हाथों से निकल जाए
कहीं विरहाग्नि में यह ज्ञान की पोथी ना जल जाए
है प्रेम जगत में सार.................................
अगर निर्गुण हैं हम तुम कौन कहता है खबर किसकी?
अलख हम तुम हैं तो किस किस को लखती है नज़र किसकी
जो हो अद्वैत के कायल तो फिर क्यों द्वैत लेते हो
अरे खुद ब्रह्म होकर ब्रह्म को उपदेश देते हो
है प्रेम जगत में सार...............................
अभी तुम खुद नहीं समझे कि किसको योग कहते हैं
सुनो इस तौर योगी द्वैत में अद्वैत रहते हैं
उधर मोहन बने राधा , वियोगिन की जुदाई में
इधर राधा बनी है श्याम . मोहन की जुदाई में
है प्रेम जगत में सार...................................
सुना जब प्रेम का अद्वैत उधो की खुली आँखें
पड़ी थी ज्ञान मद की धूल जिनमे वह धुली आंखें
हुआ रोमांच तन में बिंदु आँखों से निकल आया
गिरे श्री राधिका पग पर कहा गुरु मन्त्र यह पाया
है प्रेम जगत में सार.................
महर्षि संघ ।
तू कर ले प्रभु से प्यार और कुछ प्यार नहीं
कहा घनश्याम ने उधो से वृन्दावन जरा जाना
वहाँ की गोपियों को ज्ञान का कुछ तत्व समझाना
विरह की वेदना में वे सदा बेचैन रहती हैं
तडप कर आह भर कर और रो रोकर ये कहती हैं
है प्रेम जगत में सार...................................
कहा उधो ने हँसकर मैं अभी जाता हूँ वृन्दावन
ज़रा देखूं कि कैसा है कठिन अनुराग का बँधन
है कैसी गोपियाँ जो ज्ञान बल को कम बताती हैं
निरर्थक लोक लीला का यही गुणगान गाती हैं
है प्रेम जगत में सार...................................
चले मथुरा से जब कुछ दूर वृन्दावन निकट आया
वहीँ से प्रेम ने अपना अनोखा रंग दिखलाया
उलझ कर वस्त्र में कांटे लगे उधो को समझाने
तुम्हारा ज्ञान पर्दा फाड़ देंगे प्रेम दीवाने
है प्रेम जगत में सार...................................
विटप झुक कर ये कहते थे इधर आओ इधर आओ
पपीहा कह रहा था पी कहाँ यह भी तो बतलाओ
नदी यमुना की धारा शब्द हरि हरि का सुनाती थी
भ्रमर गुंजार से भी ये मधुर आवाज़ आती थी
है प्रेम जगत में सार......................................
गरज पहुंचे वहाँ था गोपियों का जिस जगह माडल
वहाँ थीं शांत पृथ्वी वायु धीमी थी निर्मल
सहस्त्रों गोपियों के मध्य में श्री राधिका रानी
सभी के मुख से रह रह कर निकलती थी यही वाणी
है प्रेम जगत में सार.....................................
कहा उधों ने यह बढ़कर कि मैं मथुरा से आया हूँ
सुनाता हूँ संदेसा श्याम का जो साथ लाया हूँ
कि जब यह आत्मसत्ता ही अलख निर्गुण कहाती है
तो फिर क्यों मोह वश होकर वृथा यह गान गाती है
है प्रेम जगत में सार.....................................
कह श्री राधिका ने तुम संदेसा खूब लाये हो
मगर ये याद रक्खों प्रेम की नगरी में आये हो
संभालो योग की पूँजी ना हाथों से निकल जाए
कहीं विरहाग्नि में यह ज्ञान की पोथी ना जल जाए
है प्रेम जगत में सार.................................
अगर निर्गुण हैं हम तुम कौन कहता है खबर किसकी?
अलख हम तुम हैं तो किस किस को लखती है नज़र किसकी
जो हो अद्वैत के कायल तो फिर क्यों द्वैत लेते हो
अरे खुद ब्रह्म होकर ब्रह्म को उपदेश देते हो
है प्रेम जगत में सार...............................
अभी तुम खुद नहीं समझे कि किसको योग कहते हैं
सुनो इस तौर योगी द्वैत में अद्वैत रहते हैं
उधर मोहन बने राधा , वियोगिन की जुदाई में
इधर राधा बनी है श्याम . मोहन की जुदाई में
है प्रेम जगत में सार...................................
सुना जब प्रेम का अद्वैत उधो की खुली आँखें
पड़ी थी ज्ञान मद की धूल जिनमे वह धुली आंखें
हुआ रोमांच तन में बिंदु आँखों से निकल आया
गिरे श्री राधिका पग पर कहा गुरु मन्त्र यह पाया
है प्रेम जगत में सार.................
महर्षि संघ ।
पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
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