हरिः ॐ तत्सत्! शुभमध्याह्नम्।
सर्वेभ्यो नमो नमः।
सच्चर्चा
अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह. यमलायम् ।
शेषाः स्थावरमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम्॥
(महाभारत-वनपर्व-३१३/११६)
सर्वेभ्यो नमो नमः।
सच्चर्चा
अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह. यमलायम् ।
शेषाः स्थावरमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम्॥
(महाभारत-वनपर्व-३१३/११६)
महाभारत का प्रसंग है महाराज युधिष्ठिर से यक्ष ने पूछा, सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? इस पर महाराज युधिष्ठिर जी ने उत्तर दिया-
" हे यक्ष! प्रतिदिन प्राणी मरकर यमलोक की यात्रा कर रहे हैं, फिर भी बचे हुए लोग अपनी मृत्यु के बारे में नहीं सोचते हैं। सभी जीना चाहते हैं, इससे बढ़कर और आश्चर्य क्या हो सकता है?
तभी तो सन्तों ने समझाया--
" दो बातन को भूल मत, जो चाहै कल्यान।
नारायन इक मौत को, दूजे श्रीभगवान् ॥
"बहुत गयी थोड़ी रही, नारायण अब चेत।
काल चिरैया चुग रही, निशिदिन आयू खेत॥
अमरवाणी विजयताम्
" हे यक्ष! प्रतिदिन प्राणी मरकर यमलोक की यात्रा कर रहे हैं, फिर भी बचे हुए लोग अपनी मृत्यु के बारे में नहीं सोचते हैं। सभी जीना चाहते हैं, इससे बढ़कर और आश्चर्य क्या हो सकता है?
तभी तो सन्तों ने समझाया--
" दो बातन को भूल मत, जो चाहै कल्यान।
नारायन इक मौत को, दूजे श्रीभगवान् ॥
"बहुत गयी थोड़ी रही, नारायण अब चेत।
काल चिरैया चुग रही, निशिदिन आयू खेत॥
अमरवाणी विजयताम्
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