हरिः ॐ तत्सत्! सुप्रभातम्।
सर्वेभ्यो भक्तेभ्यो नमो नमः।
दुर्लभो मानुषो देहो देहिनां क्षणभङ्गुरः।
तत्रापि दुर्लभं मन्ये वैकुण्ठप्रियदर्शनम्॥
(श्रीमद्भागवत-११-२-२९)
महापुरुष कहते हैं, प्राणियों के लिए मनुष्य शरीर अत्यन्त दुर्लभ और क्षणभङ्गुर है। इसमें भी भगवद्भक्तों का दर्शन तो और भी दुर्लभ है, क्योंकि भक्त, सन्त-महात्मा एक प्रकार से भगवत्स्वरूप ही हैं।
" राम तें अधिक राम कर दासा"
सन्त-महापुरुषों के संग से पाप-ताप नष्ट होता है। अन्तःकरण शुद्ध हो जाता है। अतः सत्पुरुषों के संग का आश्रय अवश्य लेना चाहिए।
"संत सभा देखी नहीं, कियो न हरि गुन गान।
नारायण फिर कवन बिधि, तूँ चाहत कल्यान॥"
श्रीमद्भागवतमें राजा रहूगण के प्रति महात्मा जड़भरतजी कहते हैं ------
"रहूगणैतत्तपसा न याति न चेज्यया निर्वपणाद् गृहाद्वा ।
न च्छन्दसा नैव जलाग्निसूर्यैर्विना महत्पादरजोSभिषेकम्॥
(श्रीमद्भागवत-५-१२-१२)
हे राजन्! परमज्ञान केवल
महापुरुषों की चरणधूलि को मस्तक पर धारण करने से प्राप्त होता है। तप से, वेदों से, दान से, यज्ञ से, गृहस्थ-धर्म के पालन से, जल, अग्नि या सूर्य की उपासना रूप कर्मों से वह (ब्रह्मज्ञान) किसी प्रकार भी नहीं मिलता है। इसलिए महापुरुषों का सेवन ही मोक्ष का द्वार है।
अमरवाणी विजयताम्
सर्वेभ्यो भक्तेभ्यो नमो नमः।
दुर्लभो मानुषो देहो देहिनां क्षणभङ्गुरः।
तत्रापि दुर्लभं मन्ये वैकुण्ठप्रियदर्शनम्॥
(श्रीमद्भागवत-११-२-२९)
महापुरुष कहते हैं, प्राणियों के लिए मनुष्य शरीर अत्यन्त दुर्लभ और क्षणभङ्गुर है। इसमें भी भगवद्भक्तों का दर्शन तो और भी दुर्लभ है, क्योंकि भक्त, सन्त-महात्मा एक प्रकार से भगवत्स्वरूप ही हैं।
" राम तें अधिक राम कर दासा"
सन्त-महापुरुषों के संग से पाप-ताप नष्ट होता है। अन्तःकरण शुद्ध हो जाता है। अतः सत्पुरुषों के संग का आश्रय अवश्य लेना चाहिए।
"संत सभा देखी नहीं, कियो न हरि गुन गान।
नारायण फिर कवन बिधि, तूँ चाहत कल्यान॥"
श्रीमद्भागवतमें राजा रहूगण के प्रति महात्मा जड़भरतजी कहते हैं ------
"रहूगणैतत्तपसा न याति न चेज्यया निर्वपणाद् गृहाद्वा ।
न च्छन्दसा नैव जलाग्निसूर्यैर्विना महत्पादरजोSभिषेकम्॥
(श्रीमद्भागवत-५-१२-१२)
हे राजन्! परमज्ञान केवल
महापुरुषों की चरणधूलि को मस्तक पर धारण करने से प्राप्त होता है। तप से, वेदों से, दान से, यज्ञ से, गृहस्थ-धर्म के पालन से, जल, अग्नि या सूर्य की उपासना रूप कर्मों से वह (ब्रह्मज्ञान) किसी प्रकार भी नहीं मिलता है। इसलिए महापुरुषों का सेवन ही मोक्ष का द्वार है।
अमरवाणी विजयताम्
पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
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8828347830
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