अधोमुखं शत्रुविवर्धनाय ऊर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ग्यै |
प्राचीमुखं वित्तविनाशनाय तस्माच्छुभं संमुखनारिकेलम् ||
यदि नारिकेल अधोमुख रखा जाय तो
उससे शत्रुओं की वृद्धि
होती है , यदि ऊपर को
मुख करके जाय तो उससे बहुत से रोगो की उत्पत्ति होती है तथा यदि पूर्व की ओर
मुख करके रखा जाय तो उससे धननाश होता है ।इसलिए नारिकेल को सम्मुख रखना शुभ है ।यज्ञ-मीमांसा ---
प्राचीमुखं वित्तविनाशनाय तस्माच्छुभं संमुखनारिकेलम् ||
यदि नारिकेल अधोमुख रखा जाय तो
उससे शत्रुओं की वृद्धि
होती है , यदि ऊपर को
मुख करके जाय तो उससे बहुत से रोगो की उत्पत्ति होती है तथा यदि पूर्व की ओर
मुख करके रखा जाय तो उससे धननाश होता है ।इसलिए नारिकेल को सम्मुख रखना शुभ है ।यज्ञ-मीमांसा ---
पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
यह श्लोक यज्ञ मीमांसा के कौन से पार्ट में लिखा है एवं किस ग्रंथ या पुराण से लिया गया है। कृपया मार्गदर्शन करें।
ReplyDeleteकहा का है यह मंत्र?
ReplyDelete