विवेक-विचार
हमारे जीवन में पवित्र भावना का होना नितांत आवश्यक है किन्तु उसमें विवेक-विचार का विनियोग भी अवश्य ही होना चाहिए।
केवल भावना के प्रवाह में जीवन और जगत के साथ समन्वय प्रस्थापित करना बुद्धिमत्ता नहीं है।
अतः विवेक-विचार का आश्रय लेना अति अनिवार्य है, तभी यथार्थ का बोध हो सकेगा।
एक माँ अगर केवल भावना के स्तर पर अपने बच्चे से प्यार करती है, तो फिर उसे अपने बच्चे में लाख दुर्गुण होने पर भी कभी कोई दोष उसमें दृष्टिगोचर नहीं होंगे।
विचार कीजिए, राजा धृतराष्ट्र केवल भावना के स्तर पर ही निर्णय लेते रहे, जिसका परिणाम सामने यह आया कि दुर्योधन और दुस्साशन जैसी विचारधाराओं का जन्म हुआ।
केवल भावना के प्रवाह में जीवन और जगत के साथ समन्वय प्रस्थापित करना बुद्धिमत्ता नहीं है।
अतः विवेक-विचार का आश्रय लेना अति अनिवार्य है, तभी यथार्थ का बोध हो सकेगा।
एक माँ अगर केवल भावना के स्तर पर अपने बच्चे से प्यार करती है, तो फिर उसे अपने बच्चे में लाख दुर्गुण होने पर भी कभी कोई दोष उसमें दृष्टिगोचर नहीं होंगे।
विचार कीजिए, राजा धृतराष्ट्र केवल भावना के स्तर पर ही निर्णय लेते रहे, जिसका परिणाम सामने यह आया कि दुर्योधन और दुस्साशन जैसी विचारधाराओं का जन्म हुआ।
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