पद्यपुष्प का अर्थ आपकी सेवा में प्रस्तुत है--अम्ब ते पदं वृतं मुनीन्द्रवृन्दवन्दितं चन्द्रचूडचुम्बितं गवेन्द्रपृष्ठमण्डितम् ।कालदण्डदण्डितं महेशपाशखण्डितं ज्ञानदेषु पण्डितं जगत्फणीन्द्रतुण्डितम् ।।अर्थ--अम्ब--हे मात: --हे जगज्जननि!, ते--आपके, पदं--चरण, वृतं--सेव्यत्वेन मेरे द्वारा वरण किये गये हैं । वे कैसे हैं ? --मुनीन्द्रवृन्दवन्दितं --मुनीन्द्र--महामुनियों के, वृन्द--समूहों से, वन्दितं--वन्दित--पूजित हैं ।चन्द्रचूडचुम्बितं--जब आप मान करके बैठ जाती हैं तब आपको मनाने के लिए भगवान् शिव चरणों में नमन करते हैं तब ऐसा प्रतीत होता है कि मानों वे इन चरणों का चुम्बन कररहे हैं । यह भाव सहृदयगम्य है जो साहित्यदर्पण जैसे ग्रन्थों का आलोड़न कर चुके हों, वे झटिति समझ सकते हैं ।प्रियतमा के रूठने पर उसे मनाने के लिए पति को चरणों में शिर भी रखना पड़ता है । महाराज दशरथ ने कैकेयी को मनाने के लिए हाथ भी जोड़ा और पैर भी छुआ--"अंजलिं कुर्मि कैकेयि पादौ चाSपि स्पृशामि ते ।"---वाल्मीकि रामायण, अयोध्याकाण्ड-१२/३६,करोमि के स्थान पर "कुर्मि" का प्रयोग छन्दोभंगभिया महर्षि ने किया है ; क्योंकि "अपि माषं माषं कुर्यात् छन्दोभंगं न कारयेत्" कवियों कासिद्धान्त है ।गवेन्द्रपृष्ठमण्डितं--गवेन्द्र-वृषभ का, पृष्ठ--पीठ, मण्डितम् --आपके बैठने से अलंकृत हो रहा है ।कालदण्डदण्डितं--कालदण्ड--प्रचण्ड कालदण्ड ़भी, दण्डितं--आपके चरण से दण्डित किया गया है ।अर्थात् आपके चरण के ध्याता का काल भी बाल बाँका नहीं कर सकता है ।महेशपाशखण्डितं--महेश--भगवान् शिव पशुपति कहे जाते हैं और व्रह्मा पर्यन्त सभी जीव पशु । ये सब शिव जी के मायापाश में बँधे हुए हैं । पर हे मात: ! आपके चरणों से यह पाश भी खण्डित हो जाता है । आपके भक्त आपके पादारविन्द के बल से इस पाश को छिन्न भिन्न कर देते हैं ।ज्ञानदेषु पण्डितं--ज्ञानदेषु --ज्ञानं ददतीित --ज्ञानदा:--पण्डिता: तेषु---जो ज्ञान देने वाले नारद, सनकादिक पण्डित हैं उनमें भी, आपके चरण, पण्डितं--पण्डितहैं । अर्थात् इन ज्ञानियों के हृदयनिलय में तमसाच्छन्न ज्ञान आपकी चरणनखचंद्रिका से आलोकित हुआ है ।जगत्फणीन्द्रतुण्डितम्--जगत्--यह संसार ही, फणीन्द्र--महाभयंकर सर्प है, तुण्डितम्-तुडि तोडने धातुपाठ है, तोडन का अर्थ है--विदीर्ण करना, मारना--"तोडनं--दारणं हिंसनं च"--सिद्धान्तकौमुदी,भ्वादिप्रकरण, अत: महाभयंकर संसाररूपी सर्प नष्ट होता है जिनसे, ऐसे आपके श्रीचरण हैं ।अत: हे मात: आपके श्रीचरण सेव्यरूप में मेरे द्वारा वरण किये गये हैं ।-----जय माँ महागौरी--------जय श्रीराम----
पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
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