Friday, October 2, 2015

|| सुप्रभातम् ||

 ���� जय श्री राधे कृष्ण ����
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सर्वेभ्यो भूदेवेभ्यो नमो नमः

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काव्य को दरकार है श्रृंगार के आधार की
मझदार में पतवार की सृजनमय रसधार की ,
मदचूर होकर शब्द में भी भाव को जो बिसर दे |
नाव है भटकी हुई माझी बिना पतवार की ||
तप रहें है शब्द लेकिन भावना से शून्य हैं |
दो बूँद उसमे डालिए सब प्रेम मय बौछार की ||
काव्य के इस युद्ध में योद्धा बहुत आये गए |
अर्जुन खड़े हैं ध्वनि कहाँ गांडीव के टंकार की ||
लेखनी को तीक्ष्ण करके लक्ष्य पर साधें मगर |
पुरातन पर वार ना हो जो धरोहर संसार की ||
काव्य का प्रारंभ बनी थी वेद की पहली ऋचा |
नव सृजन हेतु लिखें पुनः लेखनी सुविचार की || 

सुप्रभातम्


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
  8828347830  

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