





सर्वेभ्यो भू देवेभ्यो नमो नमः❤
पापं प्रज्ञा नाशयति क्रियमाणं पुन: पुन: ।
नष्टप्रज्ञ: पापमेव नित्यमारभते नर: ॥
अर्थ--
बार बार पाप करनेसे मनुष्य की विवेकबुद्धी नष्ट होती है और जिसकी विवेकबुद्धी नष्ट हो चुकी हो , ऐसी व्यक्ति हमेशा पापही करती है ।
बार बार पाप करनेसे मनुष्य की विवेकबुद्धी नष्ट होती है और जिसकी विवेकबुद्धी नष्ट हो चुकी हो , ऐसी व्यक्ति हमेशा पापही करती है ।
पुण्यं प्रज्ञा वर्धयति क्रियमाणं पुन:पुन: ।
वॄद्धप्रज्ञ: पुण्यमेव नित्यमारभते नर: ॥
पुण्यं प्रज्ञा वर्धयति क्रियमाणं पुन:पुन: ।
वॄद्धप्रज्ञ: पुण्यमेव नित्यमारभते नर: ॥
अर्थ--
बार बार पुण्य करनेसे मनुष्य की विवेकबुद्धी बढती है और जिसकी विवेकबुद्धी हो , ऐसी व्यक्ति हमेशा पुण्यही करती है ।
बार बार पुण्य करनेसे मनुष्य की विवेकबुद्धी बढती है और जिसकी विवेकबुद्धी हो , ऐसी व्यक्ति हमेशा पुण्यही करती है ।
अनेकशास्त्रं बहुवेदितव्यम् अल्पश्च कालो बहवश्च विघ्ना: यत् सारभूतं तदुपासितव्यं हंसो यथा क्षीरमिवाम्भुमध्यात्
अर्थ---
पढने के लिए बहौत शास्त्र हैं और ज्ञान अपरिमित है| अपने पास समय की कमी है और बाधाए बहौत है। जैसे हंस पानीमेसे दुध निकाल लेता है उसी तरह उन शास्त्रौंका सार समझलेना चाहिए।
जय माता दी
अर्थ---
पढने के लिए बहौत शास्त्र हैं और ज्ञान अपरिमित है| अपने पास समय की कमी है और बाधाए बहौत है। जैसे हंस पानीमेसे दुध निकाल लेता है उसी तरह उन शास्त्रौंका सार समझलेना चाहिए।
जय माता दी
पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
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