Thursday, February 11, 2016

“मकर-संक्राति”(सूर्य का शनि-राशि “मकर” में प्रवेश)

सिर्फ यही त्यौहार है जिसकी तारीख लगभग निश्चित है। यह “उत्तरायण पुण्यकाल” के नाम से भी जाना जाता है। इस काल में लोग गंगा-स्नान करके अपने को पाप से मुक्त करते है। शास्त्रों में इस दिन को देवदान पर्व भी कहा गया है। सम्पूर्ण दिन पुण्यकाल हेतु दान, स्नान आदि का सर्वोत्तम मुहूर्त है। माघ मास में सूर्य जब मकर राशि में होता है तब इसका लाभ प्राप्त करने के लिए देवी-देवताओं आदि पृथ्वी पर आ जाते है। अतः माघ मास एवं मकर मेंसूर्य के जाने पर यह दिन दान-पुण्य के लिए महत्वपूर्ण है. इस दिन व्रत रखकर, तिल, कंबल, सर्दियों के वस्त्र, आंवला आदि दान करने का विधान है। मकर संक्रान्ति का त्यौहार वसंत के आगमन एवं नये पैदावार एवं अन्न के सूचक एवं स्वागत का समय होता है। पौष मास में भगवान सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं साथ ही सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हं तो यह त्यौहार एवं समय शुभ कार्य आरभ्भ होने का संकेत देता है। कहा जाता है कि भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि के घर यानि मकर राशि में आते हैं तो हिन्दुओंमें पूजा, अर्चना, एवं स्नान का काफी महत्व होता है। इस दिन सूर्य पूजा, गंगा स्नान, दान एवं तिल, लाई, खिचड़ी खाने का रिवाज एवं परम्परा है । प्राण तथा उर्जा के दायक सूर्य एवं जीवनदायिनी गंगा की पूजा एवं स्नान को इस दिन महास्नान एवं मोक्षदायक माना गया है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने सूर्य उत्तरायण होने पर ही अपना शरीर छोड़ा था। इस दिन सूर्य को अर्घ्य देने कि महत्ता निम्न श्लोक में निहित है।
‘‘एहि सूर्य सहस्रांशुः तेजराशो जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणाऽर्घ्य नमोऽस्तुते ।।
मकर संक्रान्ति का पर्व, प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर एवं प्रकृति के बीच के रिश्ते को मजबूती प्रदान करने एवं आभार प्रदर्षित करने का अवसर प्रदान करता है । पूरे देश में अलग- अलग प्रांतां में अलग-अलग ढंग से मनाये जाने वाले इस त्यौहार के पीछे मुख्य उद्देश्य एकता, समानता एवं विश्वास है। इस दिन देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों विशेषतः गंगातट पर हजारों श्रद्वालु गंगा स्नान करते हं, सूर्य को अध्र्य देते हैं तथा दान-पूजा कर तिल, गुड़ एवं चूड़ा-दही एवं खिचड़ी खाते हैं। इस दिन मौज-मस्ती के रुप में जगह-जगह पतंगबाजी एवं गिल्ली-डंडे का भी खेल खेला जाता है । अन्न पूजा, गौ पूजा एवं दान-स्नान को इस दिन विषेष महत्त्व के साथ किया जाता है। इस पर्व के दिन बच्चे से बूढे़ तक सभी गंगा या नदी में स्नान कर त्यौहार का आनंद उठाते है। सूर्य एवं मोक्ष दायिनी पवित्र गंगा के प्राकृतिक एवं आध्यात्मिक संबंधों को बल देता हुआ यह पर्व हिन्दुओं के श्रद्वा एवं भक्ति को भी मजबूती प्रदान करता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था । धार्मिक मान्यताओं में इस दिन ब्रह्म मुहूत्र्त में गंगा या किसी नदी में स्नान कर सूर्य आराधना करने की
बात बतायी गयी है । गंगाका आह्वान्
करके किसी जलाशय , तालाब में स्नान विधि बतायी गई है, जो निम्न गंगा आह्वान् श्लोक में निहित है ।
‘‘नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा ।
विष्णुपादाब्जसभ्भूता गंगा त्रिपथगामिनी ।।
भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी।
द्वादशैतानी नामानि यत्र यत्र जलाशये ।। स्नानोधतः स्मेरन्नित्यं तत्र तत्र वासाम्यहम् ।।
प्रयाग की त्रिवेणी (गंगा-यमुना-सरस्वती का संगम) में मकर संक्रांति तथा कुंभ पर्व में किया हुआ स्नान अत्यंत फलदायक है। उसकी इहलौकिक व पारलौकिक कामनायें पूर्ण हो जाती हैं। मनुष्य धनी और दीर्घजीवी होता है। ‘‘धनिको दीर्घजीवी च जायते नात्र संशयः।’’ प्रयाग तीर्थों का राजा है। यहां पवित्र त्रिवेणी, वेणी-माधव, सोमनाथ, भारद्वाज मुनि का आश्रम, वासुकिनाथ, अक्षय वट एवं शेषनाथ स्थान हैं। मकर राशि के सूर्य में यहां लाखों यात्री एकत्र होकर स्नान-दान करके अपने कायिक, वाचिक, मानसिक पापों से मुक्त होकर परलोक का मार्ग प्रशस्त करते हैं। मकर संक्रांति से ही सहस्त्रों लोग प्रयाग में आकर एक महीने का कल्पवास करते हैं। मकर का स्वामी शनि होता है और शनि सूर्य में पुत्र-पिता का संबंध है, दोनों का परस्पर विरोध भी है। परंतु ग्रहों की गति में परिवर्तन का कोई प्रश्न उपस्थित नहीं होता। शनि मारक तत्त्व है। उत्तरायण में प्रवेश के समय सूर्य का प्रभाव गंगासागर तथा प्रयाग में विशेष महत्व का होता है। इस दिन स्नान, जप, दान तथा धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व होता है। यहां सूर्य की सीधी किरणें पृथ्वी पर पड़ती हैं जिसके फलस्वरूप प्राणियों के अंतर्गत निहित मारक तत्त्व का प्रभाव कम होकर प्राणियों को जीवन-दान मिलता है। गंगा वैसे भी जीवन-दायिनी है, सूर्य उससे भी अधिक प्राणवान है। सूर्य ज्ञान का प्रतीक है, शनि वैराग्य का और गंगा भक्ति का। तीनों शक्तियां मिलकर प्राणियों को ऊर्जा प्रदान करती हैं। यही कारण है कि मकर संक्रांति से एक माह तक प्रयाग में रहकर ‘‘भक्ति ज्ञान विरागाप्तो’’ भक्ति ज्ञान-वैराग्य से मानव-मात्र नयी स्फूर्ति व चेतना शक्ति प्राप्त करते हैं। उत्तरायण सूर्य में दिन बड़े व रात्रि छोटी एवं दक्षिणायन सूर्य में दिन छोटे तथा रात्रि बड़ी होती है। इस पर्व पर तिल का विशेष महत्त्व माना गया है -
तिलस्नायी तिलोद्धर्ती तिलहोमी तिलोदकी।
तिलभुक् तिलदाता च षट्तिला पापनाशनाः।।
(१) तिलों के जल से स्नान करें,(२) पिसे हुए तिलों से उबटन करें, (३) तिलों का हवन करें, (४) तिलों से तर्पण करें, (५) तिलों के बने (मोदक, बर्फी या तिलकसरी) पदार्थों का भोजन एवं तिल मिश्रित जल का सेवन करें एवं (६) तिलों का दान करें तो संपूर्ण पापों का नाश हो जाता है। इस दिन घृत और कंबल वस्त्रादि के दान का भी विशेष महत्त्व है। हेमाद्रि में स्कन्द-पुराण का मत है कि जो मनुष्य तिल की धेनु का दान करता है, वह सब इच्छाओं को प्राप्त होता हुआ परम सुख का लाभ प्राप्त करता है।
उतरे त्वयने विप्रा वस्त्रदानं महाफलं।
तिलपूर्णमनड्वाहं दत्वा रोगैः प्रमुच्यते।। -(विष्णुधर्मो०पुराण)
        उत्तरायण मकर संक्रांति पर वस्त्र दान करना महाफल को देने वाला है तथा तिल से पूर्ण बैल को देने से रोगों से छुटकारा पाता है। शिव मंदिर में उत्तम तिल के तेल का दीपक जलाना कल्याणकारी है। मकर की संक्रांति में लकड़ियों के और अग्नि के दान का विशेष फल है-‘‘झष प्रवेशे दारूणां दानमग्नेस्तथैव च’’।। संक्रांति में जागरण से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। यदि कोई भी संक्रांति अमावस्या में हो तो शिव-सूर्य पूजन से स्वर्ग प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति में प्रातःकाल स्नान करके शिव की अर्चना करनी चाहिए। उद्यापन में बत्तीस पल स्वर्ण का दान देकर वह संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। संक्रांति के दिन यदि रविवार हो तो उसे ‘आदित्य हृदय’ माना गया है। इस दिन नक्त व्रत करके मनुष्य सब कुछ पा लेता है।
‘‘अयने विषुवे चैव त्रिरात्रो पोषितो नरः।
स्नात्वा यस्त्वर्चयेदानुं सर्वकामफलं
लभेत्।’’
        अर्थात दक्षिणायन और उत्तरायण में तथा विषुव (मेष और तुला) की संक्रांति में जो प्राणी तीन रात उपवास तथा स्नान कर सूर्य का पूजन करता है, उसके सारे मनोरथ पूर्ण होते हैं। ‘‘मकरे रात्रावपि श्राद्धादि भवतीत्युक्तं प्राक्’’ अर्थात् मकर की संक्रांति में रात्रि में भी श्राद्धादि होते हैं। सभी संक्रांतियों से मकर संक्रांति का पुण्य काल भी अधिक होता है। यथा-मेष-तुला की संक्रांति में पहले (पूर्व) व बाद में दश-दश घड़ी, वृष-सिंह-वृश्चिक-कुंभ की संक्रांति में पूर्व सोलह घड़ी, मिथुन-कन्या-धनु-मीन की संक्रांति में पूर्व सोलह घड़ी, मिथुन-
कन्या-धनु एवं मीन की संक्रांति में बाद की सोलह घड़ी, कर्क की संक्रांति में पहले तीस घड़ी तथा मकर की संक्रांति में बाद की चालीस घड़ी पुण्यकाल का समय होता है- (हेमाद्रि मत)।सामान्य रूप से सभी संक्रांतियों का पूर्व व बाद में १६-१६ घड़ी का पुण्यकाल भी होता है। रात्रि में संक्रांति आने से पुण्यकाल विधान में अंतर आ जाता है। माधवीय में जाबालि ने कहा है कि मकर की संक्रांति में बीस घड़ी (८घंटे) पूर्व और बीस घड़ी बाद तक पुण्यकाल होता है। अयन संक्रांतियों में ही रात्रि में स्नान श्राद्धादि का विधान है अन्य संक्रांतियों में नहीं। लोक गीतों में भी माघ मकर की महत्ता का उदाहरण
मिलता है —
‘‘माघहिं मकर नहायेऊँ अगिनि नहिं तापेंव हों।
प्यारे दीन मोतियन के दान ताही से लाल सुंदर हों।।’’
        माता यशोदा ने कृष्ण को पुत्र रूप में पाने के लिए भी इसी मकर संक्रांति को व्रत किया था। इस दिन जगह-जगह मेलों का भी आयोजन होता है। इस पर्व पर स्नान न करने वाला सात जन्म तक रोगी व निर्धन रहता है। संतान रहित व्यक्ति को उपवास करना चाहिए। संतान वाले को उपवास निषेध है। निष्कर्ष यही निकलता है कि मकर संक्रांति का पर्व उपरोक्त तथ्यों से अधिक महत्त्व का है अतः इस दिन तीर्थों में जाकर स्नान-दान-जप अवश्य करें। दीन-दुखियों, भिक्षुकों, अतिथियों, संतों तथा ब्राह्मणों को अनेक प्रकार की वस्तुएं देकर उन्हें संतुष्ट करें, आशीर्वाद प्राप्त करें तथा देव मंदिरों में जाकर ब्राह्मणों को वस्त्रादि देकर देव दर्शन करें तो निश्चय ही संपूर्ण कामनाओं की पूर्ति होती है, त्रितापों (आध्यात्मिक-आधिदैविक-आधिभौतिक) का नाश होता है तथा संपूर्ण भोगों को भोगता हुआ उत्तरायण मार्ग से वैकुंठ लोक को प्राप्त कर सकें। शास्त्रों में सूर्य को राज, सम्मान और पिता का कारक कहा गया है। सूर्य पुत्र शनि देव को न्याय और प्रजा का प्रतीक माना गया है। ज्योतिष शास्त्र में जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य-शनि की युति हो या सूर्य -शनि के शुभ फल प्राप्त नहीं हो पा रहे हों, उन व्यक्तियों को मकर संक्रान्ति का व्रत कर, सूर्य-शनि के दान करने चाहिए। ऎसा करने से दोनों ग्रहों कि शुभता प्राप्त होती है। इसके अलावा जिस व्यक्ति के संबन्ध अपने पिता या पुत्र से मधुर न चल रहे हों, उनके लिये भी इस दिन दान-व्रत करना विशेष शुभ रहता है।
पिछली संक्रांतियों के पर्व-पालन के तिथि-क्रम :—
१६ व १७वीं शताब्दी में ९ व १०,
१७ व १८वीं शताब्दी में ११ व १२,
१८ व १९वीं शताब्दी में १३ व १४,
१९ व २०वीं शताब्दी में १४ व १५ तथा
२१ व २२वीं शताब्दी में १४, १५ और १६
जनवरी को मनाई जाने लगेगी। प्रति दो वर्ष में तारीखों का यह क्रम बदलेगा। इस प्रकार २०१६ में भी मकर संक्रांति १५ को
ही मनेगी। फिर ये क्रम हर दो साल के
अंतराल में बदलता रहेगा। २०१६ में अधिवर्ष (leap-year) आने के कारण मकर संक्रांति वर्ष २०१७ व २०१८ में पुनः १४ को तथा २०१९ और २०२० में १५ को मनाया जायेगा। यह क्रम २०३० तक चलेगा।
        खगोलीय मतानुसार, मकर संक्रांति का निर्द्धारण, पृथ्वी की अयन गति से होता है। आकाशीय वसन्त-सम्पात विंदु (ज्योतिषीय गणना का एक काल्पनिक बिंदु-Vernal Equinox) खिसकता रहता है। यह २६ हजार साल में एक बार आसमान का एक चक्कर पूरा करता है, जो हर साल ५२ सेकंड आगे खिसक जाता है। समय के साथ बदलाव जुड़ते-जुड़ते करीब ७० से ८० साल में एक दिन आगे बढ़ जाता है। पृथ्वी की गति प्रतिवर्ष ५० विकला (५ विकला =२ मिनिट) पीछे रह जाती है, वहीं सूर्य संक्रमण आगे बढ़ता जाता है। हालांकि लीप ईयर में ये दोनों वापस उसी स्थिति में आ जाते हैं। इस बीच प्रत्येक चौथे वर्ष में सूर्य संक्रमण में २२ से २४ मिनिट का अंतर आ जाता है। यह अंतर बढ़ते-बढ़ते ७० से ८० वर्ष में एक दिन हो जाता है। इस कारण मकर संक्रांति का पावन पर्व वर्ष २०८० से लगातार १५ जनवरी को ही मनाया जाने लगेगा।
        राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सासू को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है।
मकर संक्रान्ति का महत्व :--
        शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप-तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। यथोक्तं --
माघे मासे महादेव यो दास्यति घृतकम्बलम्।
स भुक्त्वा सकलान् भोगान् अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
        मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर-संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारत में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही पड़ता है।

मकर संक्रान्ति का पौराणिकता :--
        ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान् भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।

विविध राशि के जातकों के लिए दान-पदार्थों का विवरण :--
मेष- मेष राशि का स्वामी मंगल है, इस राशि के लोग मकर संक्रांति के दिन चादर (बेडसीट) एवं तिल का दान करें तो शीघ्र ही हर मनोकामना पूरी हो सकती है ।।
वृषभ- वृष राशि का स्वामी शुक्र है, इस राशि के लोग मकर संक्रांति के दिन ऊनी वस्त्र एवं तिल का दान करें तो शुभ रहेगा ।।
मिथुन- इस राशि का स्वामी बुध है, इस राशि के लोग यदि मकर संक्रांति के दिन तिल एवं चादर का दान करें तो बहुत लाभदायक सिद्ध होगा ।।
कर्क- इस राशि का स्वामी चंद्र है, इस राशि के लोगों के लिए मकर संक्रांति पर तिल, साबूदाना एवं ऊनी वस्त्र का दान करना शुभ फल प्रदान करने वाला रहेगा ।।
सिंह- सिंह राशि का स्वामी सूर्य है, मकर संक्रांति के दिन इस राशि के लोग तिल, कंबल एवं चादर का दान अपनी क्षमतानुसार करें ।।
कन्या- इस राशि का स्वामी बुध है, इस राशि के लोग मकर संक्रांति के दिन तिल, कंबल, तेल तथा उड़द दाल का दान करें।।
तुला- इस राशि के स्वामी शुक्र हैं, इस राशि के लोग तेल, रुई, वस्त्र, राई, सूती वस्त्रों के साथ ही चादर आदि का दान करें ।।
वृश्चिक- इस राशि का स्वामी मंगल है, इस राशि के लोग गरीबों को चावल और दाल की कच्ची खिचड़ी का दान करें साथ ही अपनी क्षमता के अनुसार कंबल का दान भी शुभ फलदायी सिद्ध होगा ।।
धनु- इस राशि का स्वामी गुरु है, इस राशि के लोग मकर संक्रांति के दिन तिल व चने की दाल का दान करें तो विशेष लाभ होने की संभावना बनती है ।।
मकर- इस राशि का स्वामी शनि है, ये लोग मकर संक्रांति के दिन तेल, तिल, कंबल और पुस्तक का दान करें तो इनकी हर मनोकामना पूरी हो सकती है ।।
कुंभ- इस राशि का स्वामी शनि है, इस राशि के लोग मकर संक्रांति के दिन तिल, साबुन, वस्त्र, कंघी व अन्न का दान करें ।।
मीन- इस राशि का स्वामी गुरु है, मकर
संक्रांति के दिन मीन राशि वालों को तिल, चना, सागूदाना(×), कंबल सूती वस्त्र तथा चादर का दान करें ।।

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