Thursday, February 11, 2016

पं आलोक त्रिपाठी :
आत्मा त्वं गिरिजा मति: सहचरा: प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोग रचना निद्रा समाधिस्थिति: ।
संचारः पदयोः प्रदक्षिण विधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरा
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनाम ।।
­अनु० 'हे शम्भो ! मेरी आत्मा तुम हो, बुद्धि माता पार्वती जी हैं, प्राण आपके गण हैं, शरीर आपका घर है, सम्पूर्ण विषय- भोग की रचना आप की पूजा है, निद्रा समाधि है, मेरे पाँवों का चलना-फिरना आप की परिक्रमा है तथा मेरी वाणी के सम्पूर्ण शब्द आप के स्तोत्र(स्तुति) हैं तथा मैं जो भी कर्म करता हूँ, वह सब आप अखिल-शिव-स्वरूप की आराधना ही है।

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