Thursday, February 11, 2016

[08/02 1:56 PM] Pandit Mangleshwar Tripadhi: || धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ नियमावली ||
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ॐसच्चा नामधेयाय श्री गुरवे परमात्मने नमः  
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जिसका पालन करना "धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ"के सभी विद्वत आचार्यसदस्यों को अनिवार्य होगा।
धर्मार्थ वा०स० संघ-नियमावली
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1.सर्व प्रथम संघ के सभी आदरणीय श्रेष्ठ विद्वत आचार्य गणों से वार्ता करते समय उनके नाम के आगे सम्मान सूचक शब्द अवश्य लगायें।
2.श्रेष्ठ आचार्य गणों द्वारा छोटो को भी उचित सम्मान से ही संबोधित किया जाये।
3.आपसी शिष्टाचार एवम्
सौम्यता बनाते हुये सब से प्रेम पूर्वक सदाचार का परिचय दे।
4.किसी भी सदस्य के प्रति हीन भावना न रखते हुये सब को अपने परिवार का अभिन्न अंग माने।
5.किसी भी विद्वत सदस्य के ऊपर कोई भी ऐसी टिप्पणी न करें जिससे किसी का मन आहत हो या किसी को दुःख पहुँचे।
6.संघ के नाम एवम् प्रोफाइल फोटो से किसी प्रकार की छेड़खानी न करें यह कार्य संस्थापक महोदय के अंतर्गत आता है।
7.किसी भी प्रकार के अनावश्यक मैसेज न भेजें,जैसे चुटकुले, शाइरी,कॉमेडी या 'ये मैसेज 20 लोगो को शेयर करो शाम तक अच्छी खबर मिलेगी नहीँ तो आपका अनिष्ट होगा'_ इस प्रकार के मैसेज भेजना दण्डनीय अपराध माना जायेगा।
8.संघ में मात्र केवल सनातन धर्म,आध्यात्म,पुराण,
वेदोपनिषद् ,समस्त सनातन धर्म से सम्बंधित संग्रह ही भेजें।
9.किसी भी सदस्य के प्रति हास परिहास,आपत्तिजनक टिप्पणी न करें,जिससे किसी भी प्रकार का विवाद हो।
10.किसी भी सदस्य को अपनी विद्वता से निचा दिखाने का प्रयास न करें,बल्कि अपने ज्ञान को प्रेम पूर्वक प्रस्तुत करें।
11.किसी भी प्रश्न के ऊपर चल रही वार्ता समाधान  के वक्त दूसरे पोस्ट न भेजें
12.कोई भी चित्र या वीडियो फोटो भेजना विशेष मुख्य रूप से वर्जित है इसका विशेष ध्यान रखें अन्यथा आपको बाबा महाकाल जी द्वारा उद्धृत नियम (72)के अन्तर्गत बाहर किया जा सकता है
13.संघ में किसी भी नए अतिथि विद्वान के आने पर उनका समुचित स्वागत अभिवादन करना हम सब के अच्छे शिष्टाचार का परिचायक है
14.किसी भी सदस्य से किसी प्रकार की त्रुटि होने पर उनके प्रति अन्य कोई सदस्य न उलझें। उसका समाधान, प्रशासनिक श्रेष्ठ गुरुजनों द्वारा या संघ संस्थापक द्वारा किया जायेगा। यदि किसी को किसी से शिकायत है तो वे हमारे पर्सनल एकाउंट में वार्ता करें।
15.अगर अपने निजी कारणों बस कोई भी सदस्य संघ से बाहर होना चाहते हैँ तो कृपया सुचना अवश्य दे।
16.संघ के नियमो में कुछ और सुदृढ़ बनाने के लिए आप सब अपनी राय दे सकते हैँ संस्थापक महोदय के पर्शनल में।
17."आप सभी विद्वत जन अपने प्रोफाइल में अपना नाम अवश्य लिखे |
18.नियमों में कुछ त्रुटि हो तो अपना सुझाव देने की कृपा करें।
19.संघ में किसी भी पोस्ट को दुबारा पोस्ट करना वर्जित है किसी सदस्य के आग्रह करने पर ही दुबारा पोस्ट भेज सकते हैँ |
20.संघ को और मजबूत बनाने हेतु विशिष्ठ विद्वत जनोँ की आवश्यकता होती है,अतः जिन विद्वत जनोँ के सम्पर्क में अच्छे शुमधुर व्यवहार वाले ज्ञानमय ब्राम्हण हों,उन विद्वानों को जोड़ने के लिए संस्थापक महोदय या सदस्यस्थापक गुरू जनों से सम्पर्क कराएं तथा उन्हें संघ के नियमो से भी अवगत कराये |
21.संघ में वार्ता करने का समय सुबह 5:30से रात्रि 11:00तक विशेष आवश्यकता पड़ने पर 12:00तक
22.धर्मार्थ वार्ता समाधान की प्रशासनिक अधिकारी-सूची :—

1--स्वतंत्र प्रभार--:श्रीमान् संतोष मिश्र जी
2--न्यायाधीश--:श्रीमान् राजनाथ द्विवेदी (बाबा जी)
3--उप न्यायाधीश--:श्रीमान् जगदीश द्विवेदी (77महाकाल बाबा जी)
4--मार्गदर्शक--:श्रीमान् उपेन्द्र त्रिपाठी जी
5--मार्गदर्शक--:श्रीमान सत्यप्रकाश अनुरागी जी
6--मार्गदर्शक--: श्रीमान आलोक त्रिपाठी जी
7--मार्गदर्शक--:श्रीमान कुणाल पाण्डेय जी
8--अध्यक्ष--:श्रीमान् सत्यप्रकाश तिवारी जी(कोपरखैरणे)
9--संपर्क सूत्र--:श्रीमान् सत्यप्रकाश शुक्ल जी
10--सदस्य संपर्कस्थापक--:श्रीमान् अनिल पाण्येय जी (मुम्बादेवी)
11--:प्रसंसक ÷श्रीमान् रविन्द्र मिश्र  (व्यास जी)
12--(संस्थापक)पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
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जयतु गुरुदेव, जयतु भारतम्
"""""""""""""""""""""""""""""'''""नोट--:नये अतिथि जन संघ मे सम्मिलित होने के बाद अपने संपूर्ण परिचय से,संघ सदस्यों को अवगत करायें !धन्यवाद
[10/02 11:48 PM] Pandit Mangleshwar Tripadhi: हे दीनबंधु करूणासागर, हरिनाम का जाम पिला दे मुझे।

कर रहमो नजर दाता मुझ पर, प्रभु प्रेम की प्यास जगा दे मुझे।।

हम कौन हैं, क्या हैं भान नहीं, क्या करना है अनुमान नहीं।

मदहोश हैं कोई होश नहीं, अब ज्ञान की राह दिखा दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

है रजस ने पकड़ा जोर यहाँ, छाया तम अहं घनघोर यहाँ।

छुपे राग-द्वेष सब चोर यहाँ, समदा दर दिखला दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

 

चंचल चितवन वश में ही नहीं, छुपा काम-क्रोध-मद-लोभ यहीं।

मन में समाया क्षोभ कहीं, गाफिल हूँ दाता जगा दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

 

काया में माया का डेरा है, मोह-ममता का भी बसेरा है।

अज्ञान का धुँध अँधेरा है, निज ज्ञान की राह दिखा दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

 

जीया नश्वर में कुछ ज्ञान नहीं, हूँ शाश्वत से भी अनजान सही।

पा लूँ परम तत्त्व अरमान यही, अपनी करूणा कृपा में डुबा दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

 

है आत्मरस की चाह सदा, तू दरिया-दिल अल्लाह खुदा।

तू ही माँझी है मल्लाह सदा, अब भव से पार लगा दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

 

माना मुझ में अवगुण भरे अपार, दोष-दुर्गुण संग हैं विषय-विकार।

तेरी दयादृष्टि का खुला है द्वार, इन चरणों में प्रीति बढ़ा दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

 

तू दाता सदगुरु दीनदयाल, जगे ज्ञान-ध्यान की दिव्य मशाल।

रहमत बरसा के कर दे निहाल, दिले दिलबर से तो मिला दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

 

1 comment:

  1. शांताकारं भुजगशयनं पद्यनाभं सुरेशम् । विश्‍वाधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभांगम् ।
    लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिर्ज्ञानगम्यम् । वंदे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैक नाथम् श्लोक कौनसी ग्रन्थ से प्राप्त है जिज्ञासा है विद्वानों से और व्याख्या भी

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