Thursday, February 11, 2016

हे दीनबंधु करूणासागर, हरिनाम का जाम पिला दे मुझे।

कर रहमो नजर दाता मुझ पर, प्रभु प्रेम की प्यास जगा दे मुझे।।

हम कौन हैं, क्या हैं भान नहीं, क्या करना है अनुमान नहीं।

मदहोश हैं कोई होश नहीं, अब ज्ञान की राह दिखा दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

है रजस ने पकड़ा जोर यहाँ, छाया तम अहं घनघोर यहाँ।

छुपे राग-द्वेष सब चोर यहाँ, समदा दर दिखला दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

 

चंचल चितवन वश में ही नहीं, छुपा काम-क्रोध-मद-लोभ यहीं।

मन में समाया क्षोभ कहीं, गाफिल हूँ दाता जगा दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

 

काया में माया का डेरा है, मोह-ममता का भी बसेरा है।

अज्ञान का धुँध अँधेरा है, निज ज्ञान की राह दिखा दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

 

जीया नश्वर में कुछ ज्ञान नहीं, हूँ शाश्वत से भी अनजान सही।

पा लूँ परम तत्त्व अरमान यही, अपनी करूणा कृपा में डुबा दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

 

है आत्मरस की चाह सदा, तू दरिया-दिल अल्लाह खुदा।

तू ही माँझी है मल्लाह सदा, अब भव से पार लगा दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

 

माना मुझ में अवगुण भरे अपार, दोष-दुर्गुण संग हैं विषय-विकार।

तेरी दयादृष्टि का खुला है द्वार, इन चरणों में प्रीति बढ़ा दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

 

तू दाता सदगुरु दीनदयाल, जगे ज्ञान-ध्यान की दिव्य मशाल।

रहमत बरसा के कर दे निहाल, दिले दिलबर से तो मिला दे मुझे।।

हे दीनबंधु.

 

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